Sunday 31 January 2021

संकष्ट गणेश चतुर्थी व्रत, कब, कैसे एवं कथा विधि सहित

माघ संकष्टी चतुर्थी व्रत तिथि 31 जनवरी (रविवार) 2021 

चतुर्थी तिथि आरम्भ :
 31 जनवरी , 20:24
चंद्रोदय (लुधियाना में ) : 20:45

चतुर्थी तिथि समाप्त : 
01 फरवरी , 18:24
चंद्रोदय (लुधियाना में ) : 21:49

(नोट- 1 फरवरी की चंद्रोदय से पहले ही चतुर्थी तिथि समाप्त हो रही है। अतः 1 फरवरी को नही होगा।)

माघ मास में ‘भालचन्द्र’ नामक गणेश का षोडशोपचार से पूजा करने का विधान है.  तिल के बीस लड्डू बना लें उसमे से पांच लड्डू देवता को चढ़ाये और पांच दक्षिणा के साथ ब्राह्मण को दे और दस लड्डू स्वयं खायें।

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व्रत का फल : इस व्रत को करने से सभी प्रकार के संकट दूर होते हैं।

माघ संकष्टी गणेश चौथ कथा 

सतयुग में हरिश्चन्द्र नामक सत्यवादी राजा था वे साधू-सेवी व धर्मात्मा थे। उनके राज्य में कोई भी दु:खी नही था। उन्ही के राज्य में एक ऋषि शर्मा ब्राह्मण रहते थे। उनको एक पुत्र पैदा हुआ और कुछ समय बाद ब्राह्मण की मृत्यु हो गई। ब्राह्मणी दु:खी होकर भी अपने पुत्र का पालन करने लगी और गणेश चौथ का व्रत करती थी।

एक दिन ब्राह्मणी का पुत्र गणेश जी की प्रतिमा को लेकर खेलने निकला। एक दुष्ट कुम्हार ने उस बालक को आवा (जिसमें मिट्टी के बर्तन पकाते हैं) में रखकर आग लगा दी, इधर जब लड़का घर नही आया तो ब्राह्मणी बहुत परेशान होकर और चिन्ता करते हुये गणेश जी से अपने पुत्र के लिए प्रार्थना करने लगी और कहने लगी- अनाथो के नाथ मेरी रक्षा करो। मैं आपकी शरण में हूँ। इस प्रकार रात्रि भर विलाप करती रही। प्रात: काल कुम्हार अपने पके हुए बर्तनों देखने के लिए आया तो देखा बालक वैसे ही हैं। आवा में जंघा तक पानी भर गया हैं।
इस घटना से हतप्रद कुम्हार ने राजा के पास जा कर सारे वृतान्त सुनाये और बोला मुझसे अनर्थ हो गया मैंने अनर्थ किया हैं, मैं दण्ड का भागी हूँ मुझे मृत्यु दण्ड मिलना चाहिये। महराज ! मैंने अपनी कन्या के विवाह के लिए बर्तनों का आवा लगाया था पर बर्तन न पके। मुझे एक टोटका जानने वाले ने बताया कि बालक की बलि देने से आवा पक जायेगा। मैं इस बालक की बलि दी पर अब आवा में जल भर रहा है और बालक खेल रहा हैं।

उसी समय ब्राह्मणी आ गई और अपने बालक को उठाकर कलेजे से लगा कर घुमने लगी। राजा हरिश्चन्द्र ने उस ब्राह्मणी से पुछा ऐसा चमत्कार कैसे हो गया ? ऐसा कौन सा व्रत, तप करती हो या ऐसी कौन सी विधा जानती हो जिससे ये चमत्कार हुआ। ब्राह्मणी बोली – महाराज ! मैं कोई विधा नही जानती हूँ और नहीं कोई तप जानती हूँ। मैं सिर्फ संकष्ट गणेश चतुर्थी नामक व्रत करती हूँ। इस व्रत के प्रभाव से मेरा पुत्र कुशलपूर्वक हैं।।

इस व्रत के प्रभाव से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।

1 comment:

  1. राम राम जी पण्डित जी
    अति संदर

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