Tuesday, 29 September 2020

भृगु बिंदु की गणना, द्वादश भावों में फल एवं फलित करने की विधि-

उदाहरण हेतु - 

भृगु बिंदु की गणना करने की विधि-

चन्द्रमा के भोगांश में से राहु के भोगांश को घटायें। जो बचता है उसे 2 से भाग दें। प्राप्तांक में जन्म कुंडली के राहु के भोगान्शो को जोड़ दें। यह प्राप्तांक राहु-चन्द्रमा अक्ष का भृगु बिंदु होगा।

उदाहरण ....

जन्म तिथि : 11 फरवरी, 1971
जन्म समय : 06:45 शाम
जन्म स्थान : पटना (बिहार)

लग्नकुंडली में देखें-
चंद्र स्पष्ट = 04:06:11:26
राहु स्पष्ट = 10:00:09:21 घटाने पर
------------------------------------
शेष        =06:06:02:05

(नोट- यदि चंद्रस्पष्ट की राशि संख्या राहुस्पष्ट से कम हो तो चंद्रस्पष्ट की राशि में 12 जोड़ लेना चाहिये।)

अब शेष में 2 का भाग देकर प्राप्तांक में राहुस्पष्ट को जोड़ने पर भृगुबिन्दु का स्पष्ट प्राप्त होगा।

शेष        =06:06:02:05
2 से भाग देने पर        ÷2
----------------------------------
प्राप्तांक =03:03:01:02:30 में
राहुस्पष्ट =10:00:09:21:00 को जोड़ने पर
---------------------------------------
भृगुबिन्दु =13:03:10:23:30 प्राप्त हुआ।

(नोट- राशि यदि 12 से ज्यादा हो तो 12 घटाकर ही प्रयोग करें।)

भृगुबिन्दु की राशि 12 से ज्यादा होने के कारण 12 घटाने के बाद  01:03:10:23:30  भृगुबिन्दु प्राप्त हुआ।

अतः लग्नकुण्डली में भृगुबिन्दु वृष राशि में स्थित करेंगे।

गणितकर्ता : आचार्य सोहन वेदपाठी, मो. 9463405098

फलित में प्रयोग - "भृगुबिंदु" अर्थात जन्म चन्द्रमा और राहु के अक्ष के मध्य स्थित अत्यंत संवेदनशील बिंदु"!!
यह राहु-चन्द्रमा के अक्ष पर शीघ्र प्रभावित होने वाला एक संवेदनशील बिंदु है। जब राहु-केतु सहित कोई भी शुभाशुभ ग्रह गोचरवश इसको (भृगुविन्दु को) दृष्ट करता है या इस भृगु-बिंदु से युति करता है तो कुछ न कुछ शुभाशुभ घटनाएं अवश्य घटित होती हैं। चन्द्रमा इस बिंदु पर एक दृष्टि (7वीं दृष्टि) और एक युति बनाएगा और प्रत्येक महीने दो परिणाम देगा। इसी प्रकार सूर्य, बुध या शुक्र भी एक दृष्टि और एक युति बनायेंगे और प्रत्येक वर्ष दो-दो परिणाम देंगे। मंगल तीन दृष्टियाँ और एक युति बनाएगा तथा लगभग 18 महीनों में मात्र चार परिणाम देगा। बृहस्पति 12 वर्षों में पूरे भचक्र की एक परिक्रमा करने की अवधि में तीन दृष्टि और एक युति बनाकर मात्र चार परिणाम देगा। शनि लगभग 30 वर्षों में पूरे भचक्र की एक परिक्रमा करने की अवधि में तीन दृष्टि और एक युति बनाकर मात्र चार मुख्य परिणाम देगा। राहु और केतु 18 वर्षों की अवधि में तीन-तीन परिणाम देंगें। यद्यपि इसका सदैव ध्यान रखना चाहिए कि गोचर में दृष्टियों की अपेक्षा युति अधिक प्रभावशाली परिणाम देती है।
शुभ ग्रह गुरु गोचर में भृगु बिंदु को प्रभावित करेगा तो अनुकूल परिणाम देगा जैसे शिक्षा में उन्नति, रोज़गार की प्राप्ति, विवाह, संतान का जन्म, नौकरी में पदोन्नति, व्यवसाय में लाभ, कल कारखानों का विस्तार, तीर्थयात्रा, लम्बी बिमारियों से मुक्ति, बहुत समय से अधूरी पड़ी अभिलाषाओं की पूर्ती आदि।। शुभ ग्रह बुध एवं शुक्र शुभ परिणाम देंगे जैसे सम्बन्धियों से भेंट, धन संपत्ति का लाभ, छोटी तीर्थ यात्रायें, उत्सवों और आनंद का वातावरण, सम्बन्ध निकट होना आदि।

शनि प्रतिकूल परिणाम देगा जैसे लम्बी बीमारी, जीवनसाथी से असहमति, उसकी बीमारी या वियोग, धन-संपत्ति की आकस्मिक हानि, निकट सम्बन्धी की मृत्यु, स्वयं जातक की मृत्यु आदि।

अशुभ ग्रह मंगल और सूर्य प्रतिकूल परिणाम देंगें जैसे छोटी बीमारी या चोट, निकट सम्बन्धियों से अस्थायी वियोग, धन की हानि, झगडा या एक-दूसरे को गलत समझना आदि। राहु-केतु अत्यधिक मात्रा में और ऐसे स्रोतों से (जिनसे आशा नहीं होती) आकस्मिक शुभाशुभ परिणाम देंगे जैसे विषैले जीव जंतुओं का काटना, मानसिक पीड़ा, आयकर, बिक्रीकर या प्रवर्तन विभाग का छापा, बहुमूल्य वस्तुओं की चोरी, प्रताड़ना, नौकरी में पदावनति या बर्खास्त होना, परिवारवालों से या भार्या से मतभेद आदि। कभी-कभी ऐसा भी होता है की बृहस्पति और शुक्र, या बृहस्पति और बुध, या शुक्र और बुध, दोनों एक साथ या कभी-कभी ये तीनो ही ग्रह एक साथ भृगु बिंदु के ऊपर गोचर में युति या उसे दृष्ट करके अनुकूल परिणामों के प्रभावों को अत्यधिक उच्च स्तर तक बढ़ा देते हैं।

इसी प्रकार सूर्य और मंगल, या सूर्य और शनि, या शनि और मंगल, दोनों एक साथ या एक-एक करके तीनो ग्रह बारी-बारी से भृगुबिंदु के ऊपर गोचर में युति या इसे दृष्ट करके प्रतिकूल परिणामों के प्रभावों को अत्यधिक उच्च स्तर तक अशुभ बना देते हैं।
भृगु बिंदु की राशि का स्वामी सदैव ही अच्छे परिणाम देता है बशर्ते यह जन्मांग में अत्यधिक निर्बली न हो। यदि जन्म कुंडली में नैसर्गिक शुभ ग्रह और भृगु-बिंदु एक-दूसरे से केंद्र या त्रिकोण में होते हैं तो अच्छे एवं मंगलकारी परिणाम देते हैं।
एक निर्बली ग्रह जब भृगु बिंदु के ऊपर गोचर करता है तो अपने स्वामित्व वाले भाव से सम्बंधित अशुभ परिणाम देता है। अशुभ भावो के स्वामी यदि जन्मांग में निर्बली हों और भृगु बिंदु से छठे या आठवें भाव में हों तो अपने स्वामित्व के भाव सम्बन्धी अशुभ
परिणाम नहीं देते।।



अलग-अलग भावों में भृगुबिंदु का फल- 

 केंद्र (1,4,7,10) में भृगुबिंदु कम प्रयासों के साथ अस्तित्व में प्रारंभिक उपलब्धियों को दर्शाता है

 त्रिकोण (1,5,9) में भृगुबिंदु कर्म के जबरदस्त उपाय को प्रदर्शित करता है, ट्राइन भाव में भृगुबिन्दु प्रशिक्षण, सीखने और अंतर्दृष्टि का एक बड़ा सूचक है।

 दुःख स्थान (6,8,12) में भृगुबिंदु रोजमर्रा की जिंदगी में प्रयासों के जबरदस्त उपाय के साथ देर से सिद्धि का प्रदर्शन करते हैं।

 पहले भाव में भृगुबिंदु आत्म प्रयासों के बाद कर्म का प्रदर्शन करते हैं।

 दूसरे भाव में भृगुबिंदु परिवार, धन, शिक्षा, गायन, बैंकिंग और निधि के साथ कर्म के भागीदार को प्रदर्शित करता है।

 तीसरे भाव में भृगुबिंदु साथी, सिस्टम और सर्कल, व्यापार, लघु यात्रा, परिजन, चित्रकला, योग्यता, यात्रा, मीडिया, आईटी, पीसी, मीडिया और रचना के माध्यम से कर्म को दर्शाता है।

 चौथे भाव में भृगुबिन्दु कहते हैं कि कर्म घर, माता, संपत्ति, वाहन, प्रशिक्षण से जुड़ा हुआ है।

 पाँचवें घर में भृगुबिंदु कर्म को आविष्कार, अंतर्दृष्टि, काम, सीखने, ज्योतिष, विज्ञान, सरकार, सामान्य क्षमता, सरकारी मुद्दों, बच्चों, सामग्री रचना और अन्यता के माध्यम से बताता है।

 छठे घर में भृगुबिंदु प्रयासों, कड़ी मेहनत, काम, रोजमर्रा की गतिविधियों, सेवा कानूनन, मातृ पक्ष के रिश्तेदार, अदालत, अभियोजन और चिकित्सीय के साथ हैं।

 सातवें घर में भृगुबिंदु साथी, संबंध, संयुक्त प्रयास, व्यवसाय, विवाह, उन्नति और संघ के माध्यम से कर्म को दर्शाता है।

 आठवें भाव में भृगुबिंदु कठोर प्रयासों के साथ अपमानजनक प्रयासों, बीमा, उद्योग, विधायी मुद्दों, तनाव, औषधीय, अन्य धन, एकतरफा नकदी, रहस्यमय और ज्योतिष को प्रदर्शित करता है।

 नौवें भाव में भृगुबिंदु उच्च कर्म के माध्यम से कर्म प्राप्त करते हैं, शिक्षित, व्याख्यान, अन्य धर्म, धर्म, विधायी मुद्दे, कानून, न्याय, लंबी यात्रा और भाग्य को दर्शाता है।

 दसवें भाव में भृगुबिंदु अय्यूब, कुख्यात, विधायी मुद्दों, पिता, पिता के माध्यम से कर्म कहते हैं।

 ग्यारहवें भाव में भृगुबिंदु मित्र मंडली, अपेक्षाओं और इच्छाओं, नकदी, खरीद, वरिष्ठ परिजन, वेब, विज्ञान, अंतरिक्ष, नवाचार, उद्योग के साथ कर्म का प्रदर्शन करता है।

 बारहवें भाव में भृगुबिंदु विदेशी, अलगाव, मोक्ष, दूसरों की सेवा, उपहार के माध्यम से कर्म का प्रदर्शन करता है।

 बृहस्पति: यह मध्यम गति वाला लाभकारी ग्रह अच्छे परिणाम दे सकता है, उदाहरण के लिए, अध्ययन में अग्रिम;  काम मिल रहा है;  शादी;  बच्चों का जन्म;  प्रशासन में उन्नति;  व्यापार में लाभ;  उद्योग का विस्तार;  यात्रा;  लंबे समय तक बीमारी से भर्ती;  कुछ समय पहले से ही चाहने वालों की संतुष्टि और आगे की चाहत।  बृहस्पति हर समय साथियों से सहायता के माध्यम से असुविधाओं का निपटान करने में मदद करता है।

 बुध और शुक्र: ये त्वरित गति वाले लाभकारी ग्रह महान परिणाम दे सकते हैं, उदाहरण के लिए, लंबे समय तक खिंचाव के बाद संबंधों को पूरा करना;  धन का थोड़ा लाभ;  छोटी यात्राएँ;  मधुरता और करीबी संबंधों आदि के साथ जश्न मनाना।

 शनि: मालेफ़िक परिणाम जैसे चिकित्सा मुद्दे, संयुग्मित घर्षण (या उसके विकार, टुकड़ी और इतने पर);  कब्जे / व्यवसाय में दुर्भाग्य (काम खोने, अवांछनीय आदान-प्रदान, अचानक धन की हानि और आगे);  घनिष्ठ संबंधों।

 सूर्य और मंगल: विकार / क्षति जैसे मामूली पुरुष संबंधी परिणाम;  निकट संबंधियों से संक्षिप्त अलगाव;  नकदी की हानि।

 राहु / केतु: सकारात्मक या परेशान करने वाले दोनों परिणामों का कारण बन सकता है, नीले रंग से बाहर, बड़े पैमाने पर और अचानक स्रोतों से अचानक लाभ या पुरुष संबंधी परिणाम (राहु / केतु पर आकस्मिक या लाभकारी या सामान्य रूप से आश्चर्यजनक क्षेत्रों से;  साँप या विषाक्त कीड़े द्वारा नरसंहार के परिणाम  तनाव / उकसावा;  सरकार द्वारा आवश्यक आश्वासन;  संपत्ति की चोरी;  रोजगार / संयुग्मन संबंधों में दुर्भाग्य ।


Saturday, 26 September 2020

भगवती दुर्गा को तिथि अनुसार कब क्या अर्पण करना चाहिये?

श्रीमद्देवीभागवत के अनुसार माँ भगवती के तिथि अनुसार भोग की वस्तु पं०जीतेन्द्र तिवारी उर्फ मुन्ना बाबा ने बताया।

(शुक्लपक्ष की)
प्रतिपदा तिथि में घृत से देवी की पूजा करनी चाहिये और ब्राह्मण को घृत (घी) का दान करना चाहिये; ऐसा करनेवाला सदा निरोग रहता है।

द्वितीया तिथि को शर्करा से जगदम्बा का पूजन करना चाहिये और विप्र को शर्करा का ही दान करना चाहिये; ऐसा करनेवाला मनुष्य दीर्घजीवी होता है।

तृतीया तिथि को भगवती के पूजन कर्म
में उन्हें दुग्ध (गाय का दूध) अर्पण करना चाहिये और श्रेष्ठ ब्राह्मण को दुग्ध(गाय का दूध) का दान करना चाहिये; ऐसा करने से मनुष्य सभी प्रकार के दुःखो से मुक्त हो जाता है।

चतुर्थी के दिन पुआ अर्पण करके देवी का पूजन करना चाहिये; ऐसा करने से मनुष्य विघ्न- बाधाओं से आक्रांत नही होता।

पंचमी तिथि को भगवती का पूजन करके उन्हें केला अर्पण करें और ब्राह्मण को केले का ही दान करें; ऐसा करने से मनुष्य बुद्धिमान होता है।

षष्ठी तिथि को भगवती के पूजन कर्म में मधु (शहद) को प्रधान बताया गया है। ब्राह्मण को मधु ही देना चाहिये; ऐसा करने से मनुष्य दिव्य कान्तिवाला हो जाता है।

हे मुनि श्रेष्ठ! सप्तमी तिथि को भगवती को गुड़ का नैवेद्य अर्पण करके ब्राह्मण को गुड़ का दान करने से मनुष्य सभी प्रकार के शोकों से मुक्त हो जाता है।

अष्टमी तिथि को भगवती को नारियल का नैवेद्य अर्पित करना चाहिये और ब्राह्मण को भी नारियल का दान करना चाहिये; ऐसा करनेवाला मनुष्य सभी संतापो से रहित हो जाता है।

नवमी तिथि के दिन भगवती को लावा अर्पण करने के बाद ब्राह्मण को भी लावा का दान करने से मनुष्य इस लोक में तथा परलोक में सुखी रहता है।

हे मुने! दशमी तिथि को भगवती को काले तिल अर्पित करने और ब्राह्मण को उसी तिल का दान करने से मनुष्य को यमलोक का भय नही रहता।

जो मनुष्य एकादशी तिथि को भगवती को दधि (दही) अर्पित करता है और ब्राह्मण को भी दधि प्रदान करता है; वह देवी का परम प्रिय हो जाता है।

हे मुनिश्रेष्ठ! जो द्वादशी तिथि के दिन भगवती को चिउड़े का भोग लगाकर आचार्य को भी चिउड़े का दान करता है; वह भगवती का प्रिय पात्र बन जाता है।

जो त्रयोदशी तिथि को भगवती को चना अर्पित करता है और ब्राह्मण को भी चने का दान करता है; वह प्रजाओं तथा सन्तानों से सदा सम्पन्न रहता है।

हे देवर्षे! जो मनुष्य चतुर्दशी के दिन भगवती को सत्तू अर्पण करता है और ब्राह्मण को भी सत्तू प्रदान करता है; वह भगवान शंकर का प्रिय हो जाता है।

जो पूर्णिमा तिथि को भगवती अपर्णा को खीर का भोग लगाता है और श्रेष्ठ ब्राह्मण को खीर प्रदान करता है; वह अपने सभी पितरों का उद्धार कर देता है।

विशेष:- माँ भगवती को नवरात्र में भी उपरोक्त तिथि अनुसार भोग की वस्तु अर्पण किया जाता है।

Sunday, 13 September 2020

इंदिरा एकादशी का व्रत, पारण समय एवं कथा

आज 13 सितम्बर 2020 को इंदिरा एकादशी का व्रत है। 

पारण का समय - कल 14 सितम्बर 2020 को दोपहर 01:36 PM से 04:05 PM के बीच होगा।

आप मेरे फेसबुक पेज AcharyaG पर भी पहुँच सकते है।

पारण में विलंब का कारण- द्वादशी के प्रथम चरण (चतुर्थांश) में हरिवासर होता है, जो कि 14 सितम्बर को 08:50 AM तक रहेगा। प्रातःकाल ही पारण करना चाहिये। लेकिन प्रातःकाल में हरिवासर होने से नहीं हो सकेगा। मध्याह्नकाल त्याज्य है। अतः अपराह्नकाल में ही पारण किया जा सकेगा।

पारण किस वस्तु से करें- आश्विन मास में गुड़ से पारण करना चाहिये।

व्रत कथा - धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! आश्विन कृष्ण एकादशी का क्या नाम है? इसकी विधि तथा फल क्या है? सो कृपा करके कहिए। भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि इस एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी है। यह एकादशी पापों को नष्ट करने वाली तथा पितरों को अ‍धोगति से मुक्ति देने वाली होती है। हे राजन! ध्यानपूर्वक इसकी कथा सुनो। इसके सुनने मात्र से ही वायपेय यज्ञ का फल मिलता है।

प्राचीनकाल में सतयुग के समय में महिष्मति नाम की एक नगरी में इंद्रसेन नाम का एक प्रतापी राजा धर्मपूर्वक अपनी प्रजा का पालन करते हुए शासन करता था। वह राजा पुत्र, पौत्र और धन आदि से संपन्न और विष्णु का परम भक्त था। एक दिन जब राजा सुखपूर्वक अपनी सभा में बैठा था तो आकाश मार्ग से महर्षि नारद उतरकर उसकी सभा में आए। राजा उन्हें देखते ही हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और विधिपूर्वक आसन व अर्घ्य दिया।

सुख से बैठकर मुनि ने राजा से पूछा कि हे राजन! आपके सातों अंग कुशलपूर्वक तो हैं? तुम्हारी बुद्धि धर्म में और तुम्हारा मन विष्णु भक्ति में तो रहता है? देवर्षि नारद की ऐसी बातें सुनकर राजा ने कहा- हे महर्षि! आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल है तथा मेरे यहाँ यज्ञ कर्मादि सुकृत हो रहे हैं। आप कृपा करके अपने आगमन का कारण कहिए। तब ऋषि कहने लगे कि हे राजन! आप आश्चर्य देने वाले मेरे वचनों को सुनो।

मैं एक समय ब्रह्मलोक से यमलोक को गया, वहाँ श्रद्धापूर्वक यमराज से पूजित होकर मैंने धर्मशील और सत्यवान धर्मराज की प्रशंसा की। उसी यमराज की सभा में महान ज्ञानी और धर्मात्मा तुम्हारे पिता को एकादशी का व्रत भंग होने के कारण देखा। उन्होंने संदेशा दिया सो मैं तुम्हें कहता हूँ। उन्होंने कहा कि पूर्व जन्म में ‍कोई विघ्न हो जाने के कारण मैं यमराज के निकट रह रहा हूँ, सो हे पुत्र यदि तुम आश्विन कृष्णा इंदिरा एकादशी का व्रत मेरे निमित्त करो तो मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है।

इतना सुनकर राजा कहने लगा कि हे महर्षि आप इस व्रत की विधि मुझसे कहिए। नारदजी कहने लगे- आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन प्रात:काल श्रद्धापूर्वक स्नानादि से निवृत्त होकर पुन: दोपहर को नदी आदि में जाकर स्नान करें। फिर श्रद्धापूर्व पितरों का श्राद्ध करें और एक बार भोजन करें। प्रात:काल होने पर एकादशी के दिन दातून आदि करके स्नान करें, फिर व्रत के नियमों को भक्तिपूर्वक ग्रहण करता हुआ प्रतिज्ञा करें कि ‘मैं आज संपूर्ण भोगों को त्याग कर निराहार एकादशी का व्रत करूँगा।

हे अच्युत! हे पुंडरीकाक्ष! मैं आपकी शरण हूँ, आप मेरी रक्षा कीजिए, इस प्रकार नियमपूर्वक शालिग्राम की मूर्ति के आगे विधिपूर्वक श्राद्ध करके योग्य ब्राह्मणों को फलाहार का भोजन कराएँ और दक्षिणा दें। पितरों के श्राद्ध से जो बच जाए उसको सूँघकर गौ को दें तथा ध़ूप, दीप, गंध, ‍पुष्प, नैवेद्य आदि सब सामग्री से ऋषिकेश भगवान का पूजन करें।

रात में भगवान के निकट जागरण करें। इसके पश्चात द्वादशी के दिन प्रात:काल होने पर भगवान का पूजन करके ब्राह्मणों को भोजन कराएँ। भाई-बंधुओं, स्त्री और पुत्र सहित आप भी मौन होकर भोजन करें। नारदजी कहने लगे कि हे राजन! इस विधि से यदि तुम आलस्य रहित होकर इस एकादशी का व्रत करोगे तो तुम्हारे पिता अवश्य ही स्वर्गलोक को जाएँगे। इतना कहकर नारदजी अंतर्ध्यान हो गए।

नारदजी के कथनानुसार राजा द्वारा अपने बाँधवों तथा दासों सहित व्रत करने से आकाश से पुष्पवर्षा हुई और उस राजा का पिता गरुड़ पर चढ़कर विष्णुलोक को गया। राजा इंद्रसेन भी एकादशी के व्रत के प्रभाव से निष्कंटक राज्य करके अंत में अपने पुत्र को सिंहासन पर बैठाकर स्वर्गलोक को गया। हे युधिष्ठिर! यह इंदिरा एकादशी के व्रत का माहात्म्य मैंने तुमसे कहा।


Saturday, 12 September 2020

मलमास (अधिकमास) कृत्य एवं दान सामग्री

 मलमास (पुरुषोत्तम मास) में क्या करें, क्या न करें और कैसे करें?


1. पुरुषोत्तम मास की तिथ्यनुसार दान सामग्री :-

प्रतिपदा (एकम) के दिन चांदी के पात्र में घी रखकर दान करें। द्वितीया के दिन कांसे के पात्र में सोना दान करें। तृतीया के दिन चने, चने की दाल या उससे बना हुआ वस्तु का दान करें। चतुर्थी के दिन खारक का दान करना लाभदायी होता है। पंचमी के दिन गुड़ दान में दें। षष्टी के दिन अष्टगंध का दान करें। सप्तमी-अष्टमी के दिन रक्त चंदन का दान करना उचित होता है। नवमी के दिन केसर का दान करें। दशमी के दिन कस्तुरी का दान दें। एकादशी के दिन गोरोचन का दान करें। द्वादशी के दिन शंख का दान फलदाई है। त्रयोदशी के दिन घंटाल या घंटी का दान करें। चतुर्दशी के दिन मोती या मोती की माला दान में दें। पूर्णिमा/अमावस्या के दिन माणिक तथा रत्नों का दान करें।

2. दीपदान- मलमास या अधिक मास में दीपदान करने से जातक के जीवन में परेशानियों का अंधकार मिटता है और आशाओं का प्रकाश फैलता है।

3. घट दान और कांसे का सम्पुट : जल से भरे हुए घड़े का और कांसे के सम्पुट में मालपुओं का दान देना चाहिए। इस दान की महिमा के बारे में पुरुषोत्तम महात्म्य के 31वें अध्याय में बताया गया है। इसके दान से जातक को धन-धान्य की प्राप्ति होती है।



अधिकमास के आरम्भ के दिन क्या करें?

 इस मास में श्रीकृष्ण, श्रीमद्भगवतगीता, श्रीराम कथा और श्रीविष्णु भगवान के श्री नृःसिंह स्वरूप की उपासना विशेष रूप से की जाती है। जिस दिन मलमास का आरंभ हो रहा हो उस  दिन प्रात: स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान सूर्य नारायण को पुष्प, चंदन अक्षत मिश्रित जल से अर्घ्य देकर पूजन करें। अधिक मास में शुद्ध घी के मालपुए बनाकर प्रतिदिन कांसी के बर्तन में रखकर फल, वस्त्र, दक्षिणा एवं अपने सामर्थ्य के अनुसार दान करें।

क्या करें? क्या न करें? - मलमास में विवाह संस्कार, मुंडन संस्कार, नववधु का गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत संस्कारकरना, नये वस्त्रों को धारण करना आदि कार्य इस मास में नहीं करने चाहिये। इसके अतिरिक्त नई गाड़ी खरीदना, बच्चे का नामकरण-संस्कार करना, देव-प्रतिष्ठा करना अर्थात मूर्ति स्थापना करना, कूआं, तालाब या बावड़ी आदि बनवाना, बाग अथवा बगीचे आदि भी इस मास में नहीं बनाये जाते है। काम्य व्रतों का आरंभ भी इस मास में नहीं किया जाता है। भूमि क्रय करना, सोना खरीदना, तुला या गाय आदि का दान करना भी वर्जित माना गया है। अष्टका श्राद्ध का भी निषेध माना गया है। जो काम काम्य कर्म अधिकमास से पहले ही आरंभ किये जा चुके हैं, उन्हें इस माह में किया जा सकता है। शुद्धमास में मृत व्यक्ति का प्रथम वार्षिक श्राद्ध (पंजाब में जिसे वरीना कहा जाता है) किया जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति अत्यधिक बीमार हो तो रोग की निवृति के लिए रुद्राभिषेक, महामृत्युंजयादि अनुष्ठान किया जा सकता है। कपिलाषष्ठी जैसे दुर्लभ योगों का प्रयोग, संतान जन्म के कृत्य, पितृ श्राद्ध, गर्भाधान, पुंसवन संस्कार तथा सीमांत संस्कार आदि किये जा सकते हैं। ऐसे संस्कार भी किये जा सकते हैं जो एक नियत अवधि में समाप्त हो रहे हों। इस मास में पराया अन्न और तामसिक भोजन का त्याग करना चाहिये।

जो व्यक्ति मलमास में पूरे माह व्रत का पालन करते हैं उन्हें भूमि पर ही सोना चाहिये। एक समय केवल सादा तथा सात्विक भोजन करना चाहिये। इस मास में व्रत रखते हुये भगवान विष्णु जी का श्रद्धापूर्वक पूजन करना चाहिये। संपूर्ण मास व्रत, तीर्थ स्नान, भागवत पुराण, ग्रंथों का अध्ययन विष्णु यज्ञ आदि करें। जो कार्य पूर्व में ही प्रारंभ किए जा चुके हैं, उन्हें इस मास में किया जा सकता है। इस मास में मृत व्यक्ति का प्रथम श्राद्ध किया जा सकता है। रोग आदि की निवृत्ति के लिए महामृत्युंजय, रूद्र जपादि अनुष्ठान किए जा सकते हैं। इस मास में दुर्लभ योगों का प्रयोग,  संतान जन्म के कृत्य, पितृ श्राद्ध, गर्भाधान, पुंसवन सीमंत संस्कार किए जा सकते हैं।