Thursday 23 December 2021

क्या है शाम्भवी एवं खेचरी मुद्रा ?

 क्या आप शाम्भवी मुद्रा और खेचरी मुद्रा के बारे जानना चाहेंगे? तो मैं बताना चाहूंगा कि शाम्भवी मुद्रा में होंठ तो बन्द रहते हैं, परन्तु जिह्वा आपके मुंह का अन्दरूनी अंग होकर भी दांतों और अन्दर के अन्य हिस्से से अलग स्थिर रहती है। इस मुद्रा में जिह्वा को पिछे की तरफ खींचकर उसे अडिग रखा जाता है और आज्ञाचक्र पर मन्त्र का ध्यान किया जाता है तथा अंगुलियां जपमाला पर फिसलती रहती है। जिह्वा पर बाल बराबर भी कंपन नहीं होना चाहिये।

खेचर का मतलब आकाश होता है।  हम भगवान् सूर्य को "ऊँ खेचराय नम:" कहके प्रणाम भी करते हैं। खेचरी का अर्थ आकाश में गमन करना होता है और यही कारण है कि पक्षियों को "खग" भी कहा जाता है।

खेचरी मुद्रा में जिह्वा को मुंह के अन्दर पीछे की तरफ करके तालु से चिपका लिया जाता है। बहुत ही जटिल मुद्रा है। लेकर असम्भव नहीं है। कई दिनों तक अंगुलियों से जिह्वा को बाहर की तरफ खींच-खींचकर उसपर गोघृत की मालिश की जाती है। फिर उसे पीछे की तरफ करके तालु के गह्वर में घुसाकर स्थिर रखा जाता है। पैंतीस से चालीस दिनों के कठिन व नियमित अभ्यास से खेचरी मुद्रा का कामचलाऊ अभ्यास हो जाता है और फिर उस मुद्रा में जपसाधना करते-करते एकदिन खेचरी मुद्रा भी सिद्ध हो जाती है. लेकिन उक्त दोनों मुद्राएँ शैव और शाक्त मन्त्रों की जपसाधना के लिये है। 

सूचना - सौर्य, वैष्णव, और गाणपत्य मन्त्रों की जपसाधना हेतु उक्त मुद्राएँ निषिद्ध मानी जाती है।

साभार - एक साधक प्रवीण कुमार

Thursday 4 November 2021

पंच दीपावली मुहूर्त

सौजन्य : आचार्य सोहन वेदपाठी, सिद्धपीठ दण्डी स्वामी मंदिर, लुधियाना मोबाइल 9463405098

धनतेरस से प्रारंभ होकर भैयादूज तक चलने वाला पांच दिनों का यह उत्सव 2 नवम्बर से प्रारम्भ होकर 6 नवम्बर 2021 तक चलेगा।
धनतेरस से चार दिवस दीपदान का विशेष महत्व है। अतः व्रज में सर्वत्र दीपदान और रोशनी की जाती है।

यमदीप दान - परिवार के सदस्यों की सुरक्षा के लिए धनतेरस को एक दीपक मृत्यु के देवता यमराज के लिए घर के बाहर सायंकाल में जलाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि दीपदान से यमदेव प्रसन्न होते है और परिवार के सदस्यों की अकाल मृत्यु से सुरक्षा करते है।

नरक चतुर्दशी - नरक की यातनाओं से बचने के लिये पूर्व अरुणोदय कालिक चतुर्दशी में यह किया जाता है। इसमें प्रातःकाल सूर्योदय से पहले अरुणोदय काल में शरीर में तेल-उबटनादि लगाकर स्नान किया जाता है। जो कि इस वर्ष 3 नवम्बर की रात्रि अर्थात 4 नवम्बर को सूर्योदय से पहले होगा। 4 नवम्बर 2021 को सुबह 05:29 AM से 06:48 AM तक मुहूर्त होगा।

दीपावली - 4 नवम्बर 2021 को दीपावली है। इस दिन घर-प्रतिष्ठान वगैरह में साफ-सफाई करने बाद माँ लक्ष्मी की कृपाप्राप्ति के लिये सायंकाल प्रदोषकाल में लक्ष्मी पूजन के साथ-साथ दीप जलाने का विधान है। दीपावली पूजन के लिये प्रदोष काल एवं वृषलग्न का विशेष महत्व है, जिसके अनुसार घर में दीप जलाने एवं पूजन हेतु 05:32 PM से 08:12 PM तक प्रदोष काल तथा 06:09 PM से 08:05 PM तक वृष लग्न में शुभ मुहूर्त है।
दूसरा मुहूर्त निशीथकाल में 08:12 PM से 10:51 PM तक विशेष पूजन  इत्यादि के लिये उपयुक्त होगा।

इसके अलावा भी व्यापारिक प्रतिष्ठानों एवं घर के लिये कुछ मुहूर्त है, जिन्हें प्रयोग में लाया जा सकता है। दिन में मुहूर्त- (चर, लाभ एवं अमृत की चौघड़िया में ) - 10:50 AM से 02:51 PM शुभ रहेगा।

सायंकाल मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर की चौघड़िया में ) - 04:11 PM से 08:52 PM तक शुभ रहेगा।

कालीपूजन - कार्तिक कृष्ण अमावस्या के निशाकाल में भगवती काली का पूजन किया जाता है। जिंदगी के तमाम निराशाजनक घोर अंधकार से छुटकारा पाने के लिये अवश्य माँ काली का पूजन करना चाहिये। पूजन का मुहूर्त 4 नवम्बर 2021 की रात्रि में 00:11 AM से 01:51 AM ( 5 नवम्बर) तक लाभ की चौघड़िया एवं महानिशीथकाल में होगा।

गोवर्धन पूजा को अन्नकूट भी कहा जाता है। इस दिन गेहूँ, चावल जैसे अनाज, बेसन से बनी कढ़ी और पत्ते वाली सब्जियों से बने भोजन को पकाया जाता है और भगवान कृष्ण को अर्पित किया जाता है। यह पर्व 5 नवम्बर 2021 को मनाया जायेगा। इसी दिन बलि का पूजन भी किया जाता है।

भैयादूज या यमद्वितीया - कार्तिक शुक्ल द्वितीया 6 नवम्बर 2021 को अपराह्नकाल में मनाया जायेगा। भैय्या दूज पर, बहनें अपने भाइयों को टीका करके, उनके लम्बे और खुशहाल जीवन की प्रार्थना करती हैं। भाई अपनी बहनों को उपहार प्रदान करते हैं। 

5 नवम्बर को विश्वकर्मा दिवस मनाया जायेगा एवं 6 नवम्बर को विश्वकर्मा पूजन किया जायेगा। इस दिन यमुना जी में स्नान एवं कलम-दवात का पूजन भी किया जायेगा।

सूचना- लुधियाना, जालंधर, चंडीगढ़ एवं आसपास के नगरों के लिये समय दिया गया है।

Monday 4 October 2021

नवरात्रि कलशस्थापन, व्रत और कन्यापूजन कैसे करें ?

शारदीय नवरात्र में कब क्या करें ? 

 नवरात्रारम्भ (7 अक्तू., गुरुवार, 2021 ई.) से हो रहा है। इसी दिन कलशस्थापन पूर्वक (7 अक्तूबर, 2021 ई. को लुधियाना में प्रात:काल 6:27 से 10:28 तक अथवा अभिजित् मुहूर्त (11:52 से 12:38 PM तक) में ही नवरात्रारम्भ, घटस्थापन, दीपपूजन आदि कर लेने चाहिये।। नवरात्रि का व्रत प्रारम्भ करना चाहिये। चतुर्थी तिथि का क्षय होने से तीसरा एवं चौथा नवरात्र एक ही दिन होने से 8 दिनों का नवरात्रि पर्व होगा।

कलशस्थापन का मुहूर्त विचार -

 शास्त्रानुसार सूर्योदय बाद 10 घड़ी (4 घंटे ) तक या मध्याह्न-काल में अभिजित् मुहूर्त (दिन के अष्टम मुहूर्त) के समय आश्विन शुक्ल प्रतिपदा में नवरात्रारम्भ व कलशस्थापन किया जाता है। प्रतिपदा की पूर्ववर्ती 16 घड़ियां तथा चित्रा नक्षत्र एवं वैधृति योग का पूर्वार्द्ध भाग नवरात्रारम्भ के लिए निषिद्ध है। यदि नवरात्रारम्भ हेतु यह ग्राह्य-काल पूरी तरह दूषित हो, तो इसकी परवाह न करते हुए इस दिन दूषित-काल में नवरात्रारम्भ, कलश-स्थापन कर लेना चाहिये। क्योंकि शास्त्रानुसार जहाँ तक सम्भव हो, इन दोषों से बचना चाहिये। यदि इनका त्याग करना सम्भव न हो, तो इनके दूषित काल में ही निर्धारित-काल (अर्थात् प्रथम 10 घटियों या अभिजित् मुहूर्त) में घटस्थापन, पूजादि कार्य कर लेने चाहिये।।

"एवं च प्रतिपद्-आद्यषोडशनाड़ी-निषेधश्चित्रा-वैधृतियोग-निषेधश्च उक्तकालानुरोधेन सति संभवे पालनीयो न तु निषेधानुरोधेन पूर्वाह्न: प्रारम्भकाल: प्रतिपत्तिथितिर्वाक्रमणीय:।।'

इस वर्ष यही स्थिति घटित हो रही है। आश्विन शुक्ल प्रतिपदा 7 अक्तूबर, 2021 ई. के दिन चित्रा नक्षत्र का पूर्वार्द्ध प्रातः 10 घंटे 17 मिनट तक तथा वैधृति-योग का पूर्वार्द्ध 15 घंटे 25मिनट तक है। यहाँ ( लुधियाना में ) अभिजित् मुहूर्त 11:50 से 12:36 PM तक है। स्पष्ट रूप से यहाँ चित्रा एवं वैधृति योग के पूर्वार्द्ध ने प्रतिपदा की सूर्योदयानन्तर की 10 घड़ियां (4 घण्टे) तथा अभिजित् मुहूर्त का पूरा काल दूषित कर रखा है।

 इस स्थिति में उपरोक्त शास्त्रनिर्देश अनुसार अशुभ नक्षत्र-योग होने पर भी उनकी उपेक्षा कर इसी दिन (7 अक्तूबर, 2021 ई. को ही) लुधियाना में प्रात:काल 6:27 से 10:28 तक अथवा अभिजित् मुहूर्त (11:52 से 12:38 PM तक) में ही नवरात्रारम्भ, घटस्थापन, दीपपूजन आदि कर लेने चाहिये।।

दुर्गा जी वाहन विचार - 

7 अक्टूबर को गुरुवार होने से दोला ( डोली, पालना) पर आगमन होगा। जिसका फल जनता में मृत्युभय (जनहानि) होता है। 15 अक्टूबर को विजयादशमी है। इस दिन दुर्गा जी का विदाई (गमन) होता है। इस दिन शुक्रवार होने से  हाथी पर विदा होती है। जिसका फल शुभ वृष्टि बताया गया है। अर्थात अच्छी वर्षा होने से किसान खुशहाल होंगे।।

नवरात्रि में कन्यापूजन का विचार- 

नवरात्रि में अष्टमी एवं नवमी में कन्या पूजन करना चाहिये। इस वर्ष 13 अक्टूबर को दुर्गाष्टमी एवं 14 अक्टूबर को महानवमी है। अतः दोनों दिन कन्यापूजन किया जा सकता है। नवरात्रि व्रत का पारण 15 अक्टूबर दशहरा को प्रातःकाल करना चाहिये। अधिकतर लोग कन्यापूजन के बाद स्वयं भी पूरी-चने इत्यादि खा लेते है। ऐसा नही करना चाहिये। इससे व्रत खंडित हो जाता है। कन्यापूजन के बाद स्वयं उपवास या नियम में ही रहना चाहिये। दशहरा के सुबह पारण करके व्रत खोलना (पूर्ण) चाहिये।।

विशेष जानकारी के लिये कॉल कर सकते है। मोबाइल 94623405098

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Saturday 27 March 2021

2021 में होलिका-दहन एवं होली का निर्णय

होलिका-दहन एवं होली का निर्णय

28 मार्च 2021, दिन रविवार को होलिका-दहन एवं 29 मार्च 2021, दिन सोमवार को होली (रंगोत्सव) मनाया जायेगा।

होलिकादहन का निर्णय - होलिकादहन के लिये तीन तत्वों का संयोग आवश्यक  है -
1. फाल्गुन शुक्लपक्ष पूर्णिमा तिथि हो।
2. प्रदोषकाल (विशेष परिस्थिति में सम्पूर्ण रात्रिकाल भी ग्राह्य होता है) का समय हो एवं
3 भद्रा न हो।
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28 मार्च 2021 रविवार को पूर्णिमा तिथि 24:18 तक रहेगी।
लुधियाना में प्रदोषकाल 18:40 से 21:00 तक रहेगा।
भद्रा 28 मार्च 2021 को दिन में 13:53 तक ही है।
इन तीनों तत्वों का समावेश 28 मार्च 2021 की रात्रि में 06:40 PM से 09:00 PM तक होने से होलिकादहन के लिये सर्वोत्तम समय है।

होलिका पूजा विधि

 पूर्व या उत्तर दिशा में मुख होकर गाय के गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमायें बनायें इसके साथ ही रोली, अक्षत, फूल, कच्चा सूत, हल्दी, मूंग, मीठे बताशे, गुलाल, रंग, सात प्रकार के अनाज, गेंहू की बालियां, होली पर बनने वाले पकवान, कच्चा सूत, एक लोटा जल, मिष्ठान आदि के साथ होलिका का पूजन किया जाता है। इसके साथ ही भगवान नरसिंह की पूजा भी करनी चाहिये।  पूजा के बाद परिक्रमा करें।

दृक्पक्षीय पंचांगानुसार आचार्य सोहन वेदपाठी के द्वारा गणना किया गया है।  Whatsapp केे लिये क्लिक करेें।

Tuesday 16 February 2021

उल्लास एवं नवचेतना का त्योहार वसंतपंचमी

16 फरवरी 2021, दिन - मंगलवार को वसंतपंचमी का त्योहार है। आज के वसंत पंचमी के लिए सबसे सुंदर... सबसे श्रेष्ठ उपाय तो यही है कि श्री गणेश जी और सरस्वती जी का पूजन किया जाये। सद्बुद्धि और ज्ञान है तो सब कुछ है। नहीं तो सब कुछ होते हुए भी कुछ भी नहीं है।  वसंत पंचमी को मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है।  वसंत पंचमी (माघ शुक्ल 5) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद् भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदा की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। कलाकारों का तो कहना ही क्या? जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।
वसन्त का मतलब  बस अंत जो बिगड़ा मौसम था वो सुधरेगा, मौसम की बहार आएगी, जब मौसम अच्छा होगा तो इंसान में कार्य करने की छमता बढ़ेगी, मतलब आलस्य का अंत होगा, बुरे दिन का अंत होगा,आपका अच्छा समय शुरू होगा, आप अच्छा प्रयास जरूर करे।। इस प्रयास के रूप एक पौधा अवश्य लगायें। वृक्ष है तभी ऋतुयें है, वसंत है।
ऐतिहासिक महत्व - 
वसंत पंचमी हमें गुरू रामसिंह कूका की भी याद दिलाती है। उनका जन्म 1816 ई. में वसंत पंचमी पर लुधियाना के भैणी ग्राम में हुआ था। कुछ समय वे रणजीत सिंह की सेना में रहे, फिर घर आकर खेतीबाड़ी में लग गये, पर आध्यात्मिक प्रवृत्ति होने के कारण इनके प्रवचन सुनने लोग आने लगे। धीरे-धीरे इनके शिष्यों का एक अलग पंथ ही बन गया, जो कूका पंथ कहलाया। गुरू रामसिंह गोरक्षा, स्वदेशी, नारी उध्दार, अंतरजातीय विवाह, सामूहिक विवाह आदि पर बहुत जोर देते थे। उन्होंने भी सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का बहिश्कार कर अपनी स्वतंत्र डाक और प्रशासन व्यवस्था चलायी थी। प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर भैणी गांव में मेला लगता था।

वसंत पंचमी का दिन हमें पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी हमलावर मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तानले गया और उनकी आंखें फोड़ दीं।

इसके बाद की घटना तो जगप्रसिद्ध ही है। गौरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा। पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर गौरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत किया। तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया।

चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान ॥

पृथ्वीराज चौहान ने इस बार भूल नहीं की। उन्होंने तवे पर हुई चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह गौरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान दे दिया। (1192 ई) यह घटना भी वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी।

वसंत पंचमी का लाहौर निवासी वीर हकीकत से भी गहरा संबंध है। पाकिस्तान यद्यपि मुस्लिम देश है, पर हकीकत के आकाशगामी शीश की याद में वहां वसंत पंचमी पर पतंगें उड़ाई जाती है। हकीकत लाहौर का निवासी था। अत: पतंगबाजी का सर्वाधिक जोर लाहौर में रहता है।
आचार्य सोहन वेदपाठी , मोबाइल - 9463405098

Sunday 31 January 2021

संकष्ट गणेश चतुर्थी व्रत, कब, कैसे एवं कथा विधि सहित

माघ संकष्टी चतुर्थी व्रत तिथि 31 जनवरी (रविवार) 2021 

चतुर्थी तिथि आरम्भ :
 31 जनवरी , 20:24
चंद्रोदय (लुधियाना में ) : 20:45

चतुर्थी तिथि समाप्त : 
01 फरवरी , 18:24
चंद्रोदय (लुधियाना में ) : 21:49

(नोट- 1 फरवरी की चंद्रोदय से पहले ही चतुर्थी तिथि समाप्त हो रही है। अतः 1 फरवरी को नही होगा।)

माघ मास में ‘भालचन्द्र’ नामक गणेश का षोडशोपचार से पूजा करने का विधान है.  तिल के बीस लड्डू बना लें उसमे से पांच लड्डू देवता को चढ़ाये और पांच दक्षिणा के साथ ब्राह्मण को दे और दस लड्डू स्वयं खायें।

http://www.acharyag.com/

व्रत का फल : इस व्रत को करने से सभी प्रकार के संकट दूर होते हैं।

माघ संकष्टी गणेश चौथ कथा 

सतयुग में हरिश्चन्द्र नामक सत्यवादी राजा था वे साधू-सेवी व धर्मात्मा थे। उनके राज्य में कोई भी दु:खी नही था। उन्ही के राज्य में एक ऋषि शर्मा ब्राह्मण रहते थे। उनको एक पुत्र पैदा हुआ और कुछ समय बाद ब्राह्मण की मृत्यु हो गई। ब्राह्मणी दु:खी होकर भी अपने पुत्र का पालन करने लगी और गणेश चौथ का व्रत करती थी।

एक दिन ब्राह्मणी का पुत्र गणेश जी की प्रतिमा को लेकर खेलने निकला। एक दुष्ट कुम्हार ने उस बालक को आवा (जिसमें मिट्टी के बर्तन पकाते हैं) में रखकर आग लगा दी, इधर जब लड़का घर नही आया तो ब्राह्मणी बहुत परेशान होकर और चिन्ता करते हुये गणेश जी से अपने पुत्र के लिए प्रार्थना करने लगी और कहने लगी- अनाथो के नाथ मेरी रक्षा करो। मैं आपकी शरण में हूँ। इस प्रकार रात्रि भर विलाप करती रही। प्रात: काल कुम्हार अपने पके हुए बर्तनों देखने के लिए आया तो देखा बालक वैसे ही हैं। आवा में जंघा तक पानी भर गया हैं।
इस घटना से हतप्रद कुम्हार ने राजा के पास जा कर सारे वृतान्त सुनाये और बोला मुझसे अनर्थ हो गया मैंने अनर्थ किया हैं, मैं दण्ड का भागी हूँ मुझे मृत्यु दण्ड मिलना चाहिये। महराज ! मैंने अपनी कन्या के विवाह के लिए बर्तनों का आवा लगाया था पर बर्तन न पके। मुझे एक टोटका जानने वाले ने बताया कि बालक की बलि देने से आवा पक जायेगा। मैं इस बालक की बलि दी पर अब आवा में जल भर रहा है और बालक खेल रहा हैं।

उसी समय ब्राह्मणी आ गई और अपने बालक को उठाकर कलेजे से लगा कर घुमने लगी। राजा हरिश्चन्द्र ने उस ब्राह्मणी से पुछा ऐसा चमत्कार कैसे हो गया ? ऐसा कौन सा व्रत, तप करती हो या ऐसी कौन सी विधा जानती हो जिससे ये चमत्कार हुआ। ब्राह्मणी बोली – महाराज ! मैं कोई विधा नही जानती हूँ और नहीं कोई तप जानती हूँ। मैं सिर्फ संकष्ट गणेश चतुर्थी नामक व्रत करती हूँ। इस व्रत के प्रभाव से मेरा पुत्र कुशलपूर्वक हैं।।

इस व्रत के प्रभाव से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।