Thursday 22 October 2020

दुर्गाष्टमी पर भ्रम का निवारण

 *दुर्गाष्टमी 24 अक्टूबर को है, न कि 23 अक्टूबर को। पञ्चाङ्ग कि गलती के कारण ही समाज मे भ्रम फैला है।*


दुर्गाष्टमी पर दिवाकर पञ्चाङ्ग को खुला चैलेंज


कलामात्र भी यदि सूर्योदयकाल में अष्टमी तिथि उपलब्ध हो तो उस नवमी से युक्त अष्टमी में ही दुर्गाष्टमी का पर्व मनाना चाहिये। अष्टमी यदि सप्तमी से लेशमात्र भी स्पर्श हो तो उसे त्याग देना चाहिये। क्योंकि यह राष्ट्र का नाश , पुत्र, पौत्र, पशुओं का नाश करने के साथ ही पिशाच योनि देने वाली होती है।

आचार्य जी ने कहा कि मैं पञ्चाङ्ग दिवाकर एवं उन तमाम ज्योतिषियों को चैलेन्ज करता हूँ , जिन्होंने 23 अक्टूबर को अष्टमी बताया है। यह अष्टमी घातक है। पञ्चाङ्ग दिवाकर ने धर्मसिन्धु के वचन को ही प्रमाण मानकर निर्णय दे दिया है। जबकि अन्य वचनों पर ध्यान नही दिया है। जबकि निर्णयसिन्धु में स्पष्टतः सप्तमी विद्धा अष्टमी को त्यागकर लेशमात्र या कलामात्र (24 सेकंड) के लिये भी यदि अष्टमी सूर्योदयकाल में विद्यमान हो तो उसी दिन दुर्गाष्टमी का व्रत करना चाहिये। नवमी युता अष्टमी ही ग्राह्य एवं श्रेष्ठ है, जबकि सप्तमी युता अष्टमी का सर्वथा त्याग करना चाहिये। 

प्रमाणार्थ ठाकुर प्रसाद पुस्तक भंडार वाराणसी के (संवत 2068 के संस्करण) निर्णयसिंधु के पृष्ठ संख्या 354 एवं 355 पर देखा जा सकता है।

देखिये कुछ प्रमाण वाक्य-

मदनरत्न में स्मृति संग्रह से-

शरन्महाष्टमी पूज्या नवमीसंयुता सदा।

सप्तमीसंयुता नित्यं शोकसन्तापकारिणीम्।।

रूपनारायणधृते देवीपुराणे-

सप्त मीवेधसंयुक्ता यैः कृता तु महाष्टमी।

पुत्रदारधनैर्हीना भ्रमन्तीह पिशाचवत् ॥

(निर्णयसिन्धु पृष्ठ 354)

रूपनारायण में देवीपुराण का बचन है कि-जिनों ने सप्तमीवेध से युक्त महा-अष्टमी को किया वे लोग इससंसार में पुत्र, स्त्री तथा धन से हीन होकर पिशाच के सदृश भ्रमण करते हैं।


देखिये- व्रतोपवासनियमे घटिकैकापि या भवेत् । इति देवलोक्ते:। गौडा: अप्येवमाहु:।


देवल ने कहा है कि-व्रत और उपवास के नियम में जो अष्टमी एक घडी भी हो तो उसे ग्रहण करें। लेकिन इसका भी निषेधक वाक्य मिलता है। देखिये-

(सूर्योदये कालाकाष्ठादियुतामपीच्छन्ति । 'यस्यां सूर्योदयो भवेत् । इति क्षयेणाष्टम्या: सूर्योदयाSभावे तु सप्तमीविद्धा ग्राह्या) कहते हैं । 


सप्तमी कलया यत्र परतश्चाष्टमी भवेत्।

तेन शल्यमिदं प्रोक्तं पुत्रपौत्रक्षयप्रदम्।।


सप्तमीशल्यसंविद्धा वर्जनीया सदाष्टमी।

स्तोकापि सा महापुण्या यस्यां सूर्योदयो भवेत्।।


मूलयुक्तापि सप्तमीयुता चेतत्त्याज्यैवेत्युक्तं निर्णतामृते दुर्गोत्सवे मूलेनापि हि संयुक्ता सदा त्याज्याष्टमी बुधै:। लेशमात्रेण सप्तम्या अपि स्याद्यदि दूषिता।।


दिवाकर पञ्चाङ्ग में दिया गया धर्मसिन्धु के वचनों का निर्णयसिन्धु के इस वचन से प्रतिकार हो जाता है। अतः धर्मसिन्धु के वचन के आधार पर जो 23 अक्टूबर को दुर्गाष्टमी लिखा गया है, वह ग्राह्य नही है एवं पुत्रादि को नष्ट करने वाला है। अतः 24 अक्टूबर को ही दुर्गाष्टमी करना शास्त्रोचित है।


अर्थ- यदि अष्टमी तिथि का क्षय न हुआ हो तभी सप्तमीविद्धा में स्वीकार करें। यदि अष्टमी का क्षय न हुआ हो और वह सूर्योदय के बाद कलामात्र (एक पल अर्थात् 24 सेकेंड) भी विद्यमान हो तो उस नवमीयुता अष्टमी को ही ग्रहण करना चाहिये।

Saturday 17 October 2020

दुर्गा का आगमन एवं प्रस्थान विचार, वाहन एवं फल सहित स्वयं जानें।



दुर्गा आगमन विचार

दुर्गा जी के आगमन और प्रस्थान का विचार नवरात्र में कलशस्थापन के दिन के अनुसार समझें ।

शशिसूर्ये गजारूढ़ा , शनिभौमे तुरंगमे ।

गुरुशुक्रे च दोलायां बुधे नौका प्रकीर्तिता ।।

फलम् - गजे च जलदा देवी , छत्रभङ्ग तुरंगमे ।

नौकायां सर्व सिद्धिस्यात् दोलायां मरणं धुव्रम् ।।

अर्थ : रविवार और सोमवार को आगमन( नवरात्र शुरू होने का दिन) होता है तो वाहन हाथी है जो जल की वृष्टि कराने वाला है ,  शनिवार और मंगलवार को आगमन होता है तो  राजा और सरकार को पद से हटना पड़ सकता है , गुरूवार और शुक्रवार को आगमन हो तो  दोला ( खटोला ) पर आगमन होता है जो जन हानि , रक्तपात होना बताता है , बुधवार को आगमन हो तो देवी नौका ( नाव ) पर आती है  तब भक्तो को सभी  सिद्धि देती है।

देवी का प्रस्थान - विजया दशमी के दिन के वार से गणना करें -

शशिसूर्यदिने यदि सा विजया, महिषा गमनेरूज शोककरा, 

शनिभौमे यदि सा विजया चरणायुधयानकरी विकला ,

बुधशुक्रे यदि सा विजया  गजवाहनगा शुभवृष्टिकरा , 

सुरराजगुरौ यदि सा विजया नरवाहनगा शुभसौख्यकरा ।।

अर्थ: विजयादशमी यदि  रविवार और सोमवार को हो तो माँ दुर्गा  का प्रस्थान महिष ( भैसाँ) पर होता है , जो शोक देता है , यदि शनिवार और मँगलवार को विजया दशमी हो तो मुर्गा के वाहन पर जाती है तब जनता विकल तबाही का अनुभव करती है ,  यदि बुध और शुक्रवार को गमन करे तो हाथी पर जाती है माँ  तब शुभ वृष्टि देती है , गुरूवार को विजयादशमी हो तो मनुष्य की सवारी होता है जो सुख शान्ति मिलती है। आचार्य सोहन वेदपाठी 

Thursday 1 October 2020

दक्षिण दिशा में मुख्य द्वार का निर्धारण कैसे करें।

दक्षिण दिशा में द्वार देवता

दक्षिण दिशा में द्वार बनाते समय आग्नेयकोण SE से नैऋत्यकोण SW तक की लंबाई को 9 से विभाजित करके आग्नेयकोण की तरफ से क्रमशः फल समझें। जिस स्थान पर मुख्य द्वार होगा, उसका फल बताया जा रहा है।
1. अनिल-इस स्थान पर द्वार बनानेसे सन्तानकी कमी तथा मृत्यु होती है।
2. पूषा- इस स्थानपर द्वार बनानेसे दासत्व तथा बन्धनकी प्राप्ति होती है।
3. वितथ-इस स्थानपर द्वार बनानेसे नीचता तथा भय की प्राप्ति होती है।
4. बृहत्क्षत-  स्थानपर द्वार बनानेसे धन तथा पुत्र की प्राप्ति होती है।
5. यम-इस स्थानपर द्वार बनानेसे धनकी वृद्धि होती है । (मतान्तरसे इस स्थानपर द्वार बनानेसे भयंकरता होती है।) 
6. गन्धर्व-इस स्थान पर दीवार बनाने से निर्यात तथा यशकी प्राप्ति होती है।
(मतान्तरसे इस स्थानपर द्वार बनानेसे कृतघ्रता होती है।)
7. भृंगराज-इस स्थानपर द्वार बनानेसे निर्धनता, चोरभय तथा व्याधि भय प्राप्त होता है ।
8. मृग इस स्थान पर द्वार बनानेसे पुत्रके बलका नाश, निर्बलता तथा रोग भय होता है।
9. पिता-इस स्थान पर दीवार बनाने से पुत्र हानि, निर्धनता तथा शत्रुओंकी वृद्धि होती है।


वास्तु-विचार