Monday 29 August 2022

जीवित्पुत्रिका एवं महालक्ष्मी व्रत का निर्णय कैसे करें ?

मिथिला क्षेत्रीय पञ्चाङ्ग में व्रतों का निर्णय अधिकतम वर्षकृत्य ग्रंथ के आधार पर किया जाता है। वर्षकृत्य के अनुसार जीवित्पुत्रिका प्रदोषव्यापिनी में ही स्वीकार करते हैं। जिसका पालन मिथिलांचल में लोग करते भी है। कथा में उपलब्ध वाक्य को प्रमाण मानते है। यथा - "प्रदोषसमये स्त्रीभिः पूज्यो जीमूतवाहनः" के अनुसार प्रदोषकाल में पूजन करना युक्तिसंगत है। लेकिन व्रत के लिये निर्णायक नहीं है। 

परञ्च 
इस व्रत के निर्णायक सिद्धांत में भ्रम होने का एकमात्र कारण यह है कि आश्विन कृष्ण अष्टमी को दो व्रत होता है। 
पहला - जीवित्पुत्रिका एवं 
दूसरा - महालक्ष्मी व्रत (सोलह दिनों का व्रत होता है। जो भाद्र शुक्ल अष्टमी से प्रारंभ होकर आश्विन कृष्ण अष्टमी को पूर्ण होता है।)
दोनों का निर्णायक सिद्धांत अलग-अलग है।
देखिये ब्रह्मवैवर्त पुराण के इस श्लोक को -

लक्ष्मीव्रतं चभ्युदिते शशांके 
यत्राष्टमी चाश्विनकृष्णपक्षे।
यत्रोदयं वै लभते दिनेशो 
सुताख्या व्रतमस्तु तत्र।।

स्पष्ट है कि चंद्रोदय में उपलब्ध अष्टमी में लक्ष्मी व्रत एवं सूर्योदय में उपलब्ध अष्टमी में जीवित्पुत्रिका व्रत करना चाहिये।। काशीय एवं अन्य प्रान्तीय पञ्चाङ्गकारों के द्वारा यही स्वीकृत एवं ग्राह्य है।

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