Friday, 4 February 2022

जानें वसंतपंचमी का इतिहास,विधि, कब एवं कैसे मनायें

वसंतपंचमी पर सरस्वती पूजन हेतु छायाचित्र


5 फरवरी 2022 को माघ शुक्ल पंचमी  पूर्वाह्न व्यापिनी होने से पूरे भारत में वसंतपंचमी का पावन त्यौहार मनाया जायेगा। सिद्धपीठ दण्डी स्वामी मंदिर, लुधियाना से आचार्य सोहन वेदपाठी ने बताया कि वसन्त पञ्चमी का दिन माँ सरस्वती को समर्पित है और इस दिन माँ सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। माता सरस्वती को ज्ञान, सँगीत, कला, विज्ञान और शिल्प-कला की देवी माना जाता है। इस दिन को श्री पञ्चमी और सरस्वती पूजा के नाम से भी जाना जाता है।

भक्त लोग, ज्ञान प्राप्ति और सुस्ती, आलस्य एवं अज्ञानता से छुटकारा पाने के लिये, आज के दिन देवी सरस्वती की उपासना करते हैं। कुछ प्रदेशों में आज के दिन शिशुओं को पहला अक्षर लिखना सिखाया जाता है। दूसरे शब्दों में वसन्त पञ्चमी का दिन विद्या आरम्भ या अक्षर अभ्यास के लिये काफी शुभ माना जाता है। इसीलिये माता-पिता आज के दिन शिशु को माता सरस्वती के आशीर्वाद के साथ विद्या आरम्भ कराते हैं। सभी विद्यालयों में आज के दिन सुबह के समय माता सरस्वती की पूजा की जाती है। वसन्त पञ्चमी वाले दिन सरस्वती पूजा का मुहूर्त - 07:16 ए एम से 12:41 पी एम तक रहेगा। कोरोना के कारण जो सामूहिक रूप से पूजन न कर सकें, वे विद्यार्थी अपने घर में ही अपने पुस्तकों को साफ-सफाई करके स्वच्छ वस्त्र पर रखकर माता सरस्वती का ध्यान करते हुये धूप-दीप, नैवेद्यादि से पूजन करें।

यह स्वयंसिद्ध मुहूर्तों में शामिल है। इस दिन कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है। विवाहादि संस्कारों को छोड़कर।

आइये इसके बारे में कुछ खास जानकारी आपके साथ सांझा करता हूँ।

 वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है। यों तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी (माघ शुक्ल 5) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदा की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। कलाकारों का तो कहना ही क्या? जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।

ऐतिहासिक महत्व - 

वसंत पंचमी का दिन हमें पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी हमलावर मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तानले गया और उनकी आंखें फोड़ दीं।

इसके बाद की घटना तो जगप्रसिद्ध ही है। गौरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा। पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर गौरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत किया। तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया।

चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान ॥

पृथ्वीराज चौहान ने इस बार भूल नहीं की। उन्होंने तवे पर हुई चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह गौरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान दे दिया। (1192 ई) यह घटना भी वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी।

वसंत पंचमी का लाहौर निवासी वीर हकीकत से भी गहरा संबंध है। एक दिन जब मुल्ला जी किसी काम से विद्यालय छोड़कर चले गये, तो सब बच्चे खेलने लगे, पर वह पढ़ता रहा। जब अन्य बच्चों ने उसे छेड़ा, तो दुर्गा मां की सौगंध दी। मुस्लिम बालकों ने दुर्गा मां की हंसी उड़ाई। हकीकत ने कहा कि यदि में तुम्हारी बीबी फातिमा के बारे में कुछ कहूं, तो तुम्हें कैसा लगेगा?

बस फिर क्या था, मुल्ला जी के आते ही उन शरारती छात्रों ने शिकायत कर दी कि इसने बीबी फातिमा को गाली दी है। फिर तो बात बढ़ते हुए काजी तक जा पहुंची। मुस्लिम शासन में वही निर्णय हुआ, जिसकी अपेक्षा थी। आदेश हो गया कि या तो हकीकत मुसलमान बन जाये, अन्यथा उसे मृत्युदंड दिया जायेगा। हकीकत ने यह स्वीकार नहीं किया। परिणामत: उसे तलवार के घाट उतारने का फरमान जारी हो गया।

कहते हैं उसके भोले मुख को देखकर जल्लाद के हाथ से तलवार गिर गयी। हकीकत ने तलवार उसके हाथ में दी और कहा कि जब मैं बच्चा होकर अपने धर्म का पालन कर रहा हूं, तो तुम बड़े होकर अपने धर्म से क्यों विमुख हो रहे हो? इस पर जल्लाद ने दिल मजबूत कर तलवार चला दी, पर उस वीर का शीश धरती पर नहीं गिरा। वह आकाशमार्ग से सीधा स्वर्ग चला गया। यह घटना वसंत पंचमी (23.2.1734) को ही हुई थी। पाकिस्तान यद्यपि मुस्लिम देश है, पर हकीकत के आकाशगामी शीश की याद में वहां वसंत पंचमी पर पतंगें उड़ाई जाती है। हकीकत लाहौर का निवासी था। अत: पतंगबाजी का सर्वाधिक जोर लाहौर में रहता है।

वसंत पंचमी हमें गुरू रामसिंह कूका की भी याद दिलाती है। उनका जन्म 1816 ई. में वसंत पंचमी पर लुधियाना के भैणी ग्राम में हुआ था। कुछ समय वे रणजीत सिंह की सेना में रहे, फिर घर आकर खेतीबाड़ी में लग गये, पर आध्यात्मिक प्रवृत्ति होने के कारण इनके प्रवचन सुनने लोग आने लगे। धीरे-धीरे इनके शिष्यों का एक अलग पंथ ही बन गया, जो कूका पंथ कहलाया।

गुरू रामसिंह गोरक्षा, स्वदेशी, नारी उध्दार, अंतरजातीय विवाह, सामूहिक विवाह आदि पर बहुत जोर देते थे। उन्होंने भी सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का बहिश्कार कर अपनी स्वतंत्र डाक और प्रशासन व्यवस्था चलायी थी। प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर भैणी गांव में मेला लगता था। 1872 में मेले में आते समय उनके एक शिष्य को मुसलमानों ने घेर लिया। उन्होंने उसे पीटा और गोवध कर उसके मुंह में गोमांस ठूंस दिया। यह सुनकर गुरू रामसिंह के शिष्य भड़क गये। उन्होंने उस गांव पर हमला बोल दिया, पर दूसरी ओर से अंग्रेज सेना आ गयी। अत: युध्द का पासा पलट गया।

इस संघर्ष में अनेक कूका वीर शहीद हुए और 68 पकड़ लिये गये। इनमें से 50 को सत्रह जनवरी 1872 को मलेरकोटलामें तोप के सामने खड़ाकर उड़ा दिया गया। शेष 18 को अगले दिन फांसी दी गयी। दो दिन बाद गुरू रामसिंह को भी पकड़कर बर्मा की मांडले जेल में भेज दिया गया। 14 साल तक वहां कठोर अत्याचार सहकर 1885 ई. में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया।


Thursday, 13 January 2022

मकर संक्रन्ति 14 या 15 जनवरी 2022 ?

 मकर संक्रांति 14 या 15 जनवरी को ?

सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना ही मकर संक्रांति कहलाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाता है। शास्त्रों में उत्तरायण की अवधि को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात कहा गया है। इस दिन स्नान, दान, तप, जप और अनुष्ठान का अत्यधिक महत्व है।

उत्तर भारत में प्रचलित दृक्पक्षीय पञ्चाङ्ग के अनुसार भगवान सूर्य मकर राशि में प्रवेश 14 जनवरी 2022 शुक्रवार को दोपहर में 02:29 पर होगा। अतः प्रातःकाल 8:05 के बाद से सायंकाल सूर्यास्त के पहले तक पुण्यकाल रहेगा । यह निर्णय जम्मू-कश्मीर , पंजाब, हरियाणा, हिमांचल, दिल्ली के लिये मान्य होगा।

काशी के महावीर पंचांग के अनुसार संक्रांति का पुण्यकाल 15 जनवरी को मनाया जायेगा। यह बिहार , उत्तरप्रदेश , उड़ीसा, मध्यप्रदेश के लिये होगा अन्यत्र तो 14 जनवरी को ही होगा।।

अतः निर्णयसिंधु एवं धर्मसिन्धु दोनों के  अनुसार प्रदोषकाल में या निशीथकाल में मकर की संक्रांति होने पर परदिन ही 40 घड़ी का पुण्यकाल होता है। एतद् अनुसार बिहार , उत्तरप्रदेश , उड़ीसा, मध्यप्रदेश के लिये संक्रांति का पुण्यकाल अगले दिन (15 जनवरी को )  11:41 तक ही संक्रांतिजन्य पुण्यकाल मनाया जायेगा। लेकिन खरमास की समाप्ति एवं संक्रांति तो 14 को ही माना जायेगा। जिस दिन राशि परिवर्तन होता है उसीदिन संक्रांति मानी जाती है।  

नोट: काशी से भिन्न सभी पंचांगों ( दृकपक्षीय) में 14 के दिन में ही राशि प्रवेश होने से 14 को ही पुण्यकाल भी मनाया जायेगा जो कि सर्वत्र पूरे भारत में मनाया जायेगा।

इस दिन तिल-गुड़ का क्या है महत्व....

सूर्य की उपासना- मकर संक्रांति के दिन सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर हुआ परिवर्तन माना जाता है। मकर संक्रांति से दिन बढऩे लगता है और रात की अवधि कम होती जाती है। चूंकि सूर्य ही ऊर्जा का सबसे प्रमुख स्त्रोत है इसलिए हिंदू धर्म में मकर संक्रांति मनाने का विशेष महत्व है।

जरुर करें गंगा स्नान- ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा, यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी संगम, प्रयाग में सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर स्नान के लिए आते हैं। इसलिए इस दिन गंगा स्नान करने से सभी कष्टों का निवारण हो जाता है।

तिल का महत्व- संक्रांति के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं। मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं, जो सूर्य देव के पुत्र होते हुए भी सूर्य से शत्रु भाव रखते हैं। इसलिए शनिदेव के घर में सूर्य की उपस्थिति के दौरान शनि उन्हें कष्ट न दें, इसलिए मकर संक्रांति पर तिल का दान किया जाता है।

तिल और गुड़ का सेवन- तिल में कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम तथा फॉस्फोरस पाया जाता है। इसमें विटामिन बी और सी की भी काफी मात्रा होती है। यह पाचक, पौष्टिक, स्वादिष्ट और स्वास्थ्य रक्षक है। गुड़ में भी अनेक प्रकार के खनिज पदार्थ होते हैं। इसमें कैल्शियम, आयरन और विटामिनों भरपूर मात्रा में होता है। गुड़ जीवन शक्ति बढ़ाता है। शारीरिक श्रम के बाद गुड़ खाने से थकावट दूर होती है और शक्ति मिलती है। गुड़ खाने से हृदय भी मजबूत बनता है और कोलेस्ट्रॉल घटता है। तिल व गुड़ मिलाकर खाने से शरीर पर सर्दी का असर कम होता है। यही वजह है कि मकर संक्रांति का पर्व जो कड़ाके की ठंड के वक्त जनवरी महीने में आता है, उसमें हमारे शरीर को गर्म रखने के इरादे से तिल और गुड़ के सेवन पर जोर दिया जाता है।

दान का महत्व- मकर संक्रांति के दिन ब्राह्मणों को अनाज, वस्त्र, ऊनी कपड़े, फल आदि दान करने से शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। कहते हैं कि इस दिन किया गया दान सौ गुना होकर प्राप्त होता है। मकर संक्रांति के दिन दान करने वाला व्यक्ति संपूर्ण भोगों को भोगकर मोक्ष को प्राप्त होता है।

पतंग उड़ाने का महत्व- मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने के पीछे कोई धार्मिक कारण नहीं है। संक्रांति पर जब सूर्य उत्तरायण होता है तब इसकी किरणें हमारे शरीर के लिए औषधि का काम करती है। पतंग उड़ाते समय हमारा शरीर सीधे सूर्य की किरणों के संपर्क में आ जाता है जिससे सर्दी में होने वाले रोग नष्ट हो जाते हैं। और हमारा शरीर स्वस्थ रहता है।


Thursday, 23 December 2021

क्या है शाम्भवी एवं खेचरी मुद्रा ?

 क्या आप शाम्भवी मुद्रा और खेचरी मुद्रा के बारे जानना चाहेंगे? तो मैं बताना चाहूंगा कि शाम्भवी मुद्रा में होंठ तो बन्द रहते हैं, परन्तु जिह्वा आपके मुंह का अन्दरूनी अंग होकर भी दांतों और अन्दर के अन्य हिस्से से अलग स्थिर रहती है। इस मुद्रा में जिह्वा को पिछे की तरफ खींचकर उसे अडिग रखा जाता है और आज्ञाचक्र पर मन्त्र का ध्यान किया जाता है तथा अंगुलियां जपमाला पर फिसलती रहती है। जिह्वा पर बाल बराबर भी कंपन नहीं होना चाहिये।

खेचर का मतलब आकाश होता है।  हम भगवान् सूर्य को "ऊँ खेचराय नम:" कहके प्रणाम भी करते हैं। खेचरी का अर्थ आकाश में गमन करना होता है और यही कारण है कि पक्षियों को "खग" भी कहा जाता है।

खेचरी मुद्रा में जिह्वा को मुंह के अन्दर पीछे की तरफ करके तालु से चिपका लिया जाता है। बहुत ही जटिल मुद्रा है। लेकर असम्भव नहीं है। कई दिनों तक अंगुलियों से जिह्वा को बाहर की तरफ खींच-खींचकर उसपर गोघृत की मालिश की जाती है। फिर उसे पीछे की तरफ करके तालु के गह्वर में घुसाकर स्थिर रखा जाता है। पैंतीस से चालीस दिनों के कठिन व नियमित अभ्यास से खेचरी मुद्रा का कामचलाऊ अभ्यास हो जाता है और फिर उस मुद्रा में जपसाधना करते-करते एकदिन खेचरी मुद्रा भी सिद्ध हो जाती है. लेकिन उक्त दोनों मुद्राएँ शैव और शाक्त मन्त्रों की जपसाधना के लिये है। 

सूचना - सौर्य, वैष्णव, और गाणपत्य मन्त्रों की जपसाधना हेतु उक्त मुद्राएँ निषिद्ध मानी जाती है।

साभार - एक साधक प्रवीण कुमार

Thursday, 4 November 2021

पंच दीपावली मुहूर्त

सौजन्य : आचार्य सोहन वेदपाठी, सिद्धपीठ दण्डी स्वामी मंदिर, लुधियाना मोबाइल 9463405098

धनतेरस से प्रारंभ होकर भैयादूज तक चलने वाला पांच दिनों का यह उत्सव 2 नवम्बर से प्रारम्भ होकर 6 नवम्बर 2021 तक चलेगा।
धनतेरस से चार दिवस दीपदान का विशेष महत्व है। अतः व्रज में सर्वत्र दीपदान और रोशनी की जाती है।

यमदीप दान - परिवार के सदस्यों की सुरक्षा के लिए धनतेरस को एक दीपक मृत्यु के देवता यमराज के लिए घर के बाहर सायंकाल में जलाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि दीपदान से यमदेव प्रसन्न होते है और परिवार के सदस्यों की अकाल मृत्यु से सुरक्षा करते है।

नरक चतुर्दशी - नरक की यातनाओं से बचने के लिये पूर्व अरुणोदय कालिक चतुर्दशी में यह किया जाता है। इसमें प्रातःकाल सूर्योदय से पहले अरुणोदय काल में शरीर में तेल-उबटनादि लगाकर स्नान किया जाता है। जो कि इस वर्ष 3 नवम्बर की रात्रि अर्थात 4 नवम्बर को सूर्योदय से पहले होगा। 4 नवम्बर 2021 को सुबह 05:29 AM से 06:48 AM तक मुहूर्त होगा।

दीपावली - 4 नवम्बर 2021 को दीपावली है। इस दिन घर-प्रतिष्ठान वगैरह में साफ-सफाई करने बाद माँ लक्ष्मी की कृपाप्राप्ति के लिये सायंकाल प्रदोषकाल में लक्ष्मी पूजन के साथ-साथ दीप जलाने का विधान है। दीपावली पूजन के लिये प्रदोष काल एवं वृषलग्न का विशेष महत्व है, जिसके अनुसार घर में दीप जलाने एवं पूजन हेतु 05:32 PM से 08:12 PM तक प्रदोष काल तथा 06:09 PM से 08:05 PM तक वृष लग्न में शुभ मुहूर्त है।
दूसरा मुहूर्त निशीथकाल में 08:12 PM से 10:51 PM तक विशेष पूजन  इत्यादि के लिये उपयुक्त होगा।

इसके अलावा भी व्यापारिक प्रतिष्ठानों एवं घर के लिये कुछ मुहूर्त है, जिन्हें प्रयोग में लाया जा सकता है। दिन में मुहूर्त- (चर, लाभ एवं अमृत की चौघड़िया में ) - 10:50 AM से 02:51 PM शुभ रहेगा।

सायंकाल मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर की चौघड़िया में ) - 04:11 PM से 08:52 PM तक शुभ रहेगा।

कालीपूजन - कार्तिक कृष्ण अमावस्या के निशाकाल में भगवती काली का पूजन किया जाता है। जिंदगी के तमाम निराशाजनक घोर अंधकार से छुटकारा पाने के लिये अवश्य माँ काली का पूजन करना चाहिये। पूजन का मुहूर्त 4 नवम्बर 2021 की रात्रि में 00:11 AM से 01:51 AM ( 5 नवम्बर) तक लाभ की चौघड़िया एवं महानिशीथकाल में होगा।

गोवर्धन पूजा को अन्नकूट भी कहा जाता है। इस दिन गेहूँ, चावल जैसे अनाज, बेसन से बनी कढ़ी और पत्ते वाली सब्जियों से बने भोजन को पकाया जाता है और भगवान कृष्ण को अर्पित किया जाता है। यह पर्व 5 नवम्बर 2021 को मनाया जायेगा। इसी दिन बलि का पूजन भी किया जाता है।

भैयादूज या यमद्वितीया - कार्तिक शुक्ल द्वितीया 6 नवम्बर 2021 को अपराह्नकाल में मनाया जायेगा। भैय्या दूज पर, बहनें अपने भाइयों को टीका करके, उनके लम्बे और खुशहाल जीवन की प्रार्थना करती हैं। भाई अपनी बहनों को उपहार प्रदान करते हैं। 

5 नवम्बर को विश्वकर्मा दिवस मनाया जायेगा एवं 6 नवम्बर को विश्वकर्मा पूजन किया जायेगा। इस दिन यमुना जी में स्नान एवं कलम-दवात का पूजन भी किया जायेगा।

सूचना- लुधियाना, जालंधर, चंडीगढ़ एवं आसपास के नगरों के लिये समय दिया गया है।

Monday, 4 October 2021

नवरात्रि कलशस्थापन, व्रत और कन्यापूजन कैसे करें ?

शारदीय नवरात्र में कब क्या करें ? 

 नवरात्रारम्भ (7 अक्तू., गुरुवार, 2021 ई.) से हो रहा है। इसी दिन कलशस्थापन पूर्वक (7 अक्तूबर, 2021 ई. को लुधियाना में प्रात:काल 6:27 से 10:28 तक अथवा अभिजित् मुहूर्त (11:52 से 12:38 PM तक) में ही नवरात्रारम्भ, घटस्थापन, दीपपूजन आदि कर लेने चाहिये।। नवरात्रि का व्रत प्रारम्भ करना चाहिये। चतुर्थी तिथि का क्षय होने से तीसरा एवं चौथा नवरात्र एक ही दिन होने से 8 दिनों का नवरात्रि पर्व होगा।

कलशस्थापन का मुहूर्त विचार -

 शास्त्रानुसार सूर्योदय बाद 10 घड़ी (4 घंटे ) तक या मध्याह्न-काल में अभिजित् मुहूर्त (दिन के अष्टम मुहूर्त) के समय आश्विन शुक्ल प्रतिपदा में नवरात्रारम्भ व कलशस्थापन किया जाता है। प्रतिपदा की पूर्ववर्ती 16 घड़ियां तथा चित्रा नक्षत्र एवं वैधृति योग का पूर्वार्द्ध भाग नवरात्रारम्भ के लिए निषिद्ध है। यदि नवरात्रारम्भ हेतु यह ग्राह्य-काल पूरी तरह दूषित हो, तो इसकी परवाह न करते हुए इस दिन दूषित-काल में नवरात्रारम्भ, कलश-स्थापन कर लेना चाहिये। क्योंकि शास्त्रानुसार जहाँ तक सम्भव हो, इन दोषों से बचना चाहिये। यदि इनका त्याग करना सम्भव न हो, तो इनके दूषित काल में ही निर्धारित-काल (अर्थात् प्रथम 10 घटियों या अभिजित् मुहूर्त) में घटस्थापन, पूजादि कार्य कर लेने चाहिये।।

"एवं च प्रतिपद्-आद्यषोडशनाड़ी-निषेधश्चित्रा-वैधृतियोग-निषेधश्च उक्तकालानुरोधेन सति संभवे पालनीयो न तु निषेधानुरोधेन पूर्वाह्न: प्रारम्भकाल: प्रतिपत्तिथितिर्वाक्रमणीय:।।'

इस वर्ष यही स्थिति घटित हो रही है। आश्विन शुक्ल प्रतिपदा 7 अक्तूबर, 2021 ई. के दिन चित्रा नक्षत्र का पूर्वार्द्ध प्रातः 10 घंटे 17 मिनट तक तथा वैधृति-योग का पूर्वार्द्ध 15 घंटे 25मिनट तक है। यहाँ ( लुधियाना में ) अभिजित् मुहूर्त 11:50 से 12:36 PM तक है। स्पष्ट रूप से यहाँ चित्रा एवं वैधृति योग के पूर्वार्द्ध ने प्रतिपदा की सूर्योदयानन्तर की 10 घड़ियां (4 घण्टे) तथा अभिजित् मुहूर्त का पूरा काल दूषित कर रखा है।

 इस स्थिति में उपरोक्त शास्त्रनिर्देश अनुसार अशुभ नक्षत्र-योग होने पर भी उनकी उपेक्षा कर इसी दिन (7 अक्तूबर, 2021 ई. को ही) लुधियाना में प्रात:काल 6:27 से 10:28 तक अथवा अभिजित् मुहूर्त (11:52 से 12:38 PM तक) में ही नवरात्रारम्भ, घटस्थापन, दीपपूजन आदि कर लेने चाहिये।।

दुर्गा जी वाहन विचार - 

7 अक्टूबर को गुरुवार होने से दोला ( डोली, पालना) पर आगमन होगा। जिसका फल जनता में मृत्युभय (जनहानि) होता है। 15 अक्टूबर को विजयादशमी है। इस दिन दुर्गा जी का विदाई (गमन) होता है। इस दिन शुक्रवार होने से  हाथी पर विदा होती है। जिसका फल शुभ वृष्टि बताया गया है। अर्थात अच्छी वर्षा होने से किसान खुशहाल होंगे।।

नवरात्रि में कन्यापूजन का विचार- 

नवरात्रि में अष्टमी एवं नवमी में कन्या पूजन करना चाहिये। इस वर्ष 13 अक्टूबर को दुर्गाष्टमी एवं 14 अक्टूबर को महानवमी है। अतः दोनों दिन कन्यापूजन किया जा सकता है। नवरात्रि व्रत का पारण 15 अक्टूबर दशहरा को प्रातःकाल करना चाहिये। अधिकतर लोग कन्यापूजन के बाद स्वयं भी पूरी-चने इत्यादि खा लेते है। ऐसा नही करना चाहिये। इससे व्रत खंडित हो जाता है। कन्यापूजन के बाद स्वयं उपवास या नियम में ही रहना चाहिये। दशहरा के सुबह पारण करके व्रत खोलना (पूर्ण) चाहिये।।

विशेष जानकारी के लिये कॉल कर सकते है। मोबाइल 94623405098

व्हाट्सएप्प के लिये क्लिक करें wa.me/+919463405098