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ज्योतिष, कर्मकांड एवं व्रत-पर्व से सम्बंधित सूचना समाज तक पहुँचाना
उद्देश्य
Monday, 20 February 2023
सोमवती अमावस्या का महत्त्व
Thursday, 26 January 2023
वसन्तपंचमी 23 जनवरी 2023
26 जनवरी 2023 को माघ शुक्ल पंचमी पूर्वाह्न व्यापिनी होने से पूरे भारत में वसंतपंचमी का पावन त्यौहार मनाया जायेगा। सिद्धपीठ दण्डी स्वामी मंदिर, लुधियाना से आचार्य सोहन वेदपाठी ने बताया कि वसन्त पञ्चमी का दिन माँ सरस्वती को समर्पित है और इस दिन माँ सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। माता सरस्वती को ज्ञान, सँगीत, कला, विज्ञान और शिल्प-कला की देवी माना जाता है। इस दिन को श्री पञ्चमी और सरस्वती पूजा के नाम से भी जाना जाता है।
भक्त लोग, ज्ञान प्राप्ति और सुस्ती, आलस्य एवं अज्ञानता से छुटकारा पाने के लिये, आज के दिन देवी सरस्वती की उपासना करते हैं। कुछ प्रदेशों में आज के दिन शिशुओं को पहला अक्षर लिखना सिखाया जाता है। दूसरे शब्दों में वसन्त पञ्चमी का दिन विद्या आरम्भ या अक्षर अभ्यास के लिये काफी शुभ माना जाता है। इसीलिये माता-पिता आज के दिन शिशु को माता सरस्वती के आशीर्वाद के साथ विद्या आरम्भ कराते हैं। सभी विद्यालयों में आज के दिन सुबह के समय माता सरस्वती की पूजा की जाती है। वसन्त पञ्चमी वाले दिन सरस्वती पूजा विद्यार्थी अपने घर में ही अपने पुस्तकों को साफ-सफाई करके स्वच्छ वस्त्र पर रखकर माता सरस्वती का ध्यान करते हुये धूप-दीप, नैवेद्यादि से पूजन करें।
यह स्वयंसिद्ध मुहूर्तों में शामिल है। इस दिन कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है। विवाहादि संस्कारों को छोड़कर।
आइये इसके बारे में कुछ खास जानकारी आपके साथ सांझा करता हूँ।
वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है। यों तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी (माघ शुक्ल पंचमी) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदा की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। कलाकारों का तो कहना ही क्या? जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।
ऐतिहासिक महत्व -
वसंत पंचमी का दिन हमें पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी हमलावर मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तानले गया और उनकी आंखें फोड़ दीं।
इसके बाद की घटना तो जगप्रसिद्ध ही है। गौरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा। पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर गौरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत किया। तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया।
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान ॥
पृथ्वीराज चौहान ने इस बार भूल नहीं की। उन्होंने तवे पर हुई चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह गौरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान दे दिया। (1192 ई) यह घटना भी वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी।
वसंत पंचमी का लाहौर निवासी वीर हकीकत से भी गहरा संबंध है। एक दिन जब मुल्ला जी किसी काम से विद्यालय छोड़कर चले गये, तो सब बच्चे खेलने लगे, पर वह पढ़ता रहा। जब अन्य बच्चों ने उसे छेड़ा, तो दुर्गा मां की सौगंध दी। मुस्लिम बालकों ने दुर्गा मां की हंसी उड़ाई। हकीकत ने कहा कि यदि में तुम्हारी बीबी फातिमा के बारे में कुछ कहूं, तो तुम्हें कैसा लगेगा?
बस फिर क्या था, मुल्ला जी के आते ही उन शरारती छात्रों ने शिकायत कर दी कि इसने बीबी फातिमा को गाली दी है। फिर तो बात बढ़ते हुए काजी तक जा पहुंची। मुस्लिम शासन में वही निर्णय हुआ, जिसकी अपेक्षा थी। आदेश हो गया कि या तो हकीकत मुसलमान बन जाये, अन्यथा उसे मृत्युदंड दिया जायेगा। हकीकत ने यह स्वीकार नहीं किया। परिणामत: उसे तलवार के घाट उतारने का फरमान जारी हो गया।
कहते हैं उसके भोले मुख को देखकर जल्लाद के हाथ से तलवार गिर गयी। हकीकत ने तलवार उसके हाथ में दी और कहा कि जब मैं बच्चा होकर अपने धर्म का पालन कर रहा हूं, तो तुम बड़े होकर अपने धर्म से क्यों विमुख हो रहे हो? इस पर जल्लाद ने दिल मजबूत कर तलवार चला दी, पर उस वीर का शीश धरती पर नहीं गिरा। वह आकाशमार्ग से सीधा स्वर्ग चला गया। यह घटना वसंत पंचमी (23.2.1734) को ही हुई थी। पाकिस्तान यद्यपि मुस्लिम देश है, पर हकीकत के आकाशगामी शीश की याद में वहां वसंत पंचमी पर पतंगें उड़ाई जाती है। हकीकत लाहौर का निवासी था। अत: पतंगबाजी का सर्वाधिक जोर लाहौर में रहता है।
वसंत पंचमी हमें गुरू रामसिंह कूका की भी याद दिलाती है। उनका जन्म 1816 ई. में वसंत पंचमी पर लुधियाना के भैणी ग्राम में हुआ था। कुछ समय वे रणजीत सिंह की सेना में रहे, फिर घर आकर खेतीबाड़ी में लग गये, पर आध्यात्मिक प्रवृत्ति होने के कारण इनके प्रवचन सुनने लोग आने लगे। धीरे-धीरे इनके शिष्यों का एक अलग पंथ ही बन गया, जो कूका पंथ कहलाया।
गुरू रामसिंह गोरक्षा, स्वदेशी, नारी उध्दार, अंतरजातीय विवाह, सामूहिक विवाह आदि पर बहुत जोर देते थे। उन्होंने भी सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का बहिश्कार कर अपनी स्वतंत्र डाक और प्रशासन व्यवस्था चलायी थी। प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर भैणी गांव में मेला लगता था। 1872 में मेले में आते समय उनके एक शिष्य को मुसलमानों ने घेर लिया। उन्होंने उसे पीटा और गोवध कर उसके मुंह में गोमांस ठूंस दिया। यह सुनकर गुरू रामसिंह के शिष्य भड़क गये। उन्होंने उस गांव पर हमला बोल दिया, पर दूसरी ओर से अंग्रेज सेना आ गयी। अत: युध्द का पासा पलट गया।
इस संघर्ष में अनेक कूका वीर शहीद हुए और 68 पकड़ लिये गये। इनमें से 50 को सत्रह जनवरी 1872 को मलेरकोटलामें तोप के सामने खड़ाकर उड़ा दिया गया। शेष 18 को अगले दिन फांसी दी गयी। दो दिन बाद गुरू रामसिंह को भी पकड़कर बर्मा की मांडले जेल में भेज दिया गया। 14 साल तक वहां कठोर अत्याचार सहकर 1885 ई. में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया।
Saturday, 31 December 2022
सब धरा का धरा रह जायेगा।
सब धरा का धरा रह जायेगा।
एक राजा को राज भोगते हुए काफी समय हो गया था। बाल भी सफ़ेद होने लगे थे। एक दिन उसने अपने दरबार में एक उत्सव रखा और अपने गुरुदेव एवं मित्र देश के राजाओं को भी सादर आमन्त्रित किया। उत्सव को रोचक बनाने के लिए राज्य की सुप्रसिद्ध नर्तकी को भी बुलाया गया।
राजा ने कुछ स्वर्ण मुद्रायें अपने गुरु जी को भी दीं, ताकि यदि वे चाहें तो नर्तकी के अच्छे गीत व नृत्य पर वे उसे पुरस्कृत कर सकें। सारी रात नृत्य चलता रहा। ब्रह्म मुहूर्त की बेला आयी। नर्तकी ने देखा कि तबले वाला ऊँघ रहा है, उसको जगाने के लिए नर्तकी ने एक दोहा पढ़ा –
“बहु बीती, थोड़ी रही, पल पल गयी बिताय।
एक पलक के कारने, क्यों कलंक लग जाय ।”
अब इस दोहे का अलग-अलग व्यक्तियों ने अपने अनुरुप अलग-अलग अर्थ निकाला। तबले वाला सतर्क होकर बजाने लगा। जब यह बात गुरु जी ने सुनी तो उन्होंने सारी मोहरें उस नर्तकी के सामने फैंक दीं। वही दोहा नर्तकी ने फिर पढ़ा तो राजा की लड़की ने अपना नवलखा हार नर्तकी को भेंट कर दिया।
उसने फिर वही दोहा दोहराया तो राजा के पुत्र युवराज ने अपना मुकट उतारकर नर्तकी को समर्पित कर दिया। नर्तकी फिर वही दोहा दोहराने लगी तो राजा ने कहा – “बस कर, एक दोहे से तुमने वैश्या होकर भी सबको लूट लिया है।” जब यह बात राजा के गुरु ने सुनी तो गुरु के नेत्रों में आँसू आ गए और गुरु जी कहने लगे – “राजन! इसको तू वैश्या मत कह, ये तो अब मेरी गुरु बन गयी है। इसने मेरी आँखें खोल दी हैं। यह कह रही है कि मैं सारी उम्र संयमपूर्वक भक्ति करता रहा और आखिरी समय में नर्तकी का मुज़रा देखकर अपनी साधना नष्ट करने यहाँ चला आया हूँ, भाई! मैं तो चला।” यह कहकर गुरु जी तो अपना कमण्डल उठाकर जंगल की ओर चल पड़े।
राजा की लड़की ने कहा – “पिता जी! मैं जवान हो गयी हूँ। आप आँखें बन्द किए बैठे हैं, मेरी शादी नहीं कर रहे थे और आज रात मैंने आपके महावत के साथ भागकर अपना जीवन बर्बाद कर लेना था। लेकिन इस नर्तकी ने मुझे सुमति दी है कि जल्दबाजी मत कर कभी तो तेरी शादी होगी ही। क्यों अपने पिता को कलंकित करने पर तुली है?”
युवराज ने कहा – “पिता जी! आप वृद्ध हो चले हैं, फिर भी मुझे राज नहीं दे रहे थे। मैंने आज रात ही सिपाहियों से मिलकर आपका कत्ल करवा देना था। लेकिन इस नर्तकी ने समझाया कि पगले! आज नहीं तो कल आखिर राज तो तुम्हें ही मिलना है, क्यों अपने पिता के खून का कलंक अपने सिर पर लेता है। धैर्य रख।”
जब ये सब बातें राजा ने सुनी तो राजा को भी आत्म ज्ञान हो गया। राजा के मन में वैराग्य आ गया। राजा ने तुरन्त फैसला लिया – “क्यों न मैं अभी युवराज का राजतिलक कर दूँ।” फिर क्या था, उसी समय राजा ने युवराज का राजतिलक किया और अपनी पुत्री को कहा – “पुत्री ! दरबार में एक से एक राजकुमार आये हुए हैं। तुम अपनी इच्छा से किसी भी राजकुमार के गले में वरमाला डालकर पति रुप में चुन सकती हो।” राजकुमारी ने ऐसा ही किया और राजा सब त्याग कर जंगल में गुरु की शरण में चला गया।
यह सब देखकर नर्तकी ने सोचा – “मेरे एक दोहे से इतने लोग सुधर गए, लेकिन मैं क्यूँ नहीं सुधर पायी?” उसी समय नर्तकी में भी वैराग्य आ गया। उसी समय उसने निर्णय लिया कि आज से मैं अपना धंधा बन्द करती हूँ और कहा कि “हे प्रभु! मेरे पापों से मुझे क्षमा करना। बस, आज से मैं सिर्फ तेरा नाम सुमिरन करुँगी।”
समझ आने की बात है, दुनिया बदलते देर नहीं लगती। एक दोहे की दो लाईनों से भी हृदय परिवर्तन हो सकता है। बस, केवल थोड़ा धैर्य रखकर चिन्तन करने की आवश्यकता है।
प्रशंसा से पिघलना नहीं चाहिए, आलोचना से उबलना नहीं चाहिए। नि:स्वार्थ भाव से कर्म करते रहें। क्योंकि इस धरा का, इस धरा पर, सब धरा रह जायेगा!
Sunday, 30 October 2022
8 नवम्बर 2022 के खण्डग्रास एवं ग्रस्तोदय चंद्रग्रहण का विवरण के लिये क्लिक करें -
आचार्य सोहन वेदपाठी , संपर्क - 9463405098
08 नवम्बर 2022 को भारतीय समयानुसार पूरे विश्व में 02:39PM से 06:19 PM तक ग्रहण है। इस ग्रहण की खण्डग्रास आकृति सम्पूर्ण भारत में दृश्य होगी । परंतु भारत के अधिकतर क्षेत्र में यह ग्रस्तोदय ही होगा अर्थात् चंद्रोदय से पूर्व ही ग्रहण प्रारम्भ हो चुका होगा।
भारत के अतिरिक्त यह एशिया, उत्तर-पूर्वी यूरोप, ऑस्ट्रेलिया , उत्तर - पश्चिमी कनाडा, उत्तरी-अमेरिका , दक्षिणी अमेरिका , प्रशांत महासागर , थाईलैंड , गोटेमाला , इंडोनेशिया , दक्षिण कोरिया , जापान , मैक्सिको , चीन , म्यांमार , फिलीपींस में दृश्य होगा।
ग्रस्तोदय ग्रहण का प्रारम्भ स्थानीय चंद्रोदय से माना जाता है एवं उसका सूतक पूर्ववर्ती स्थानीय सूर्योदय से ( न की 9 घंटे पहले ) ही प्रारम्भ माना जाता है ।
लुधियाना में सूर्योदय 06:51 बजे होगा एवं चंद्रोदय 05:30 बजे शाम को होगा ।।
तदनुसार सूतक प्रारम्भ = 06:51 AM से
ग्रहण प्रारम्भ = 05:30 PM से
ग्रहण समाप्ति = 06:19 PM तक
ग्रहण समाप्ति ( 06:19 PM) के बाद सचैल स्नान करके शुद्ध चंद्र के बिम्ब का दर्शन करने के बाद ही भोजनादि करने का विधान है।
विशेष - सिद्धपीठ दण्डी स्वामी मंदिर (लुधियाना में ) प्रातःकाल 5:30 से 6:30 तक एवं सायंकाल 7:00 से 8:00 बजे तक दर्शन हेतु खुला रहेगा। इसी समय में भोग-आरती सम्पन्न होगा।।