अस्ति कश्चिद् वाग्विशेषः? (कोई विद्वान लगता है?)
आचार्य सोहन वेदपाठी M - 9463405098
आज आषाढ़ मास के प्रथम दिन ('आषाढस्य प्रथम दिवसे') पर कालिदास से विदुषि पत्नी विद्योत्तमा द्वारा (कालीदास द्वारा काशी से ज्ञान प्राप्ति उपरांत वापसी पर) उच्चारित प्रथम वाक्य के तीन शब्द ‘अस्ति कश्चिद् वाग्विशेषः ?' अर्थात - कोई विद्वान लगता है?
विद्योत्तमा के इस आश्चर्यमिश्रित विस्मयकारी प्रश्न का आशय यह है कि, – “आपने क्या कोई विशेष उल्लेखनीय योग्यता प्राप्त कर ली है! जिससे कि मैं आपका स्वागत, अभिनन्दन और अभिवादन करूँ?"
कालीदास द्वारा ऊँट की चिल्लाहट पर 'ऊष्ट्र:' के स्थान पर ‘ऊट्र:' के गलत उच्चारण करने पर विद्योत्तमा ने कालीदास को पत्नी के लिए सही अर्थों में योग्य पति बनने हेतु, योग्यता प्राप्ति के उपरांत ही, सम्बन्ध की बात रखी, जिससे कि ऐसे योग्य पति से सम्बन्ध बनाने में पत्नी को भी गर्व और गौरव का अनुभव हो।
जब काशी से विद्वान बन काली दास लौटे, तब उक्त प्रश्न किया गया, जिसका उचित समाधान कारक उत्तर देकर कालीदास ने विद्योत्तमा को संतुष्ट कर उसका सम्मान प्राप्त किया और आगे चल कर उक्त प्रश्न में प्रयुक्त हुए तीनों शब्दों से ही प्रारम्भ कर तीन पृथक्-पृथक् काव्य ग्रंथों की रचना की।
'अस्ति' शब्द से 'कुमार सम्भव' का पहला श्लोक -
अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा
हिमालयो नाम नगाधिराजः।
पूर्वापरौ तोयनिधी वागह्यौ
स्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः॥
'कश्चित्' शब्द से 'मेघदूत' का पहला श्लोक -
कश्चित् कान्ता विरहगुरुणा स्वाधिकारात् प्रमत्तः
शापेनास्तङ्गमितमहिमा वर्षभोग्येण भर्तुः।
यक्षश्चक्रे जनकतनयास्नानपुण्योदकेषु
स्निग्धच्छायातरुषु वसतिं रामगिर्याश्रमेषु।।
अर्थ - कोई यक्ष था। वह अपने काम में असावधान हुआ तो यक्षपति ने उसे शाप दिया कि वर्ष-भर पत्नी का भारी विरह सहो। इससे उसकी महिमा ढल गई। उसने रामगिरि के आश्रमों में बस्ती बनाई जहाँ घने छायादार
पेड़ थे और जहाँ सीता जी के स्नानों द्वारा पवित्र हुए जल-कुंड भरे थे।
'वाग्विशेषः' शब्द से 'रघुवंश' का पहला श्लोक -
'वागर्थाविव सम्पृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये।
जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ।
अर्थ - शब्द और अर्थ के समान सर्वदा मिले हुए जगत के माता पिता पार्वती और शिव को प्रणाम करता हूँ।
कालीदास ने उक्त के अतिरिक्त अन्य कई काव्य और नाट्य ग्रंथ भी लिखे ।
उपमा कालिदासस्य👏
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